मुजफ्फरनगर. पृथक राज्य की मांग को लेकर बस से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में जो दर्दनाक घटना हुई, उसे याद कर राज्य आंदोलनकारी आज भी सिहर उठते हैं। उनका कहना है कि खून पसीना बहाकर अलग राज्य तो बन गया लेकिन जिस आदर्श राज्य का सपना आंदोलनकारियों ने देखा था उस ओर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
प्रदीप कुकरेती जिलाध्यक्ष (उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच) ने बताया कि 28 साल पहले दो अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अलग राज्य के लिए प्रदर्शन करना तय हुआ तो गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। काफी संख्या में होने के कारण आंदोलनकारी आगे बढ़े और मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पहुंचे जहां फायरिंग, बेबसों पर कहर, लाठीचार्ज, पथराव हुए। बच्चों महिलाओं के साथ अभद्रता हुई। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
पुष्पलता सिलमाना (वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी) ने बताया कि आंदोलनकारियों के लिए आज भी दुख इस बात का है कि राज्य बनने का सपना जरूर पूरा हो गया, लेकिन राज्य गठन से पूर्व जो सपने देखे थे वह आज भी सपने ही बने हैं। उस दिन रात का मंजर ध्यान करती हूं तो सिहरन उठ आती हैं। मन दुखी होता है कि इतने वर्षों बाद भी इस कांड में बलिदानियों के स्वजन को न्याय नहीं मिला।
प्रदीप डबराल (वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी) ने बताया कि तत्कालीन सरकार की दमन और निरंकुशता का वीभत्स दृश्य कभी न भूलने वाला है। अलग राज्य बनने के बाद काफी उपलब्धि मिली लेकिन आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं। रोजगार, पलायन को लेकर आज भी लोग परेशान हैं। खाली होते पहाड़ इस समय चिंता का विषय है। सरकार को चाहिए कि इस ओर गंभीरता से कार्य करें जिससे व राज्य विकास के पथ पर दौड़ता दिखे।
राज्य आंदोलनकारी राकेश नौटियाल ने बताया कि जब भी दो अक्टूबर आता है तो रामपुर तिराहा का वो मंजर याद कर रोना आता है। स्थिति यह है कि आज भी अपने सपने के उत्तराखंड के लिए लड़ रहे हैं। इस दिन बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जाती है लेकिन उनके सपने कितने साकार हुए इस बारे में भी प्रशासन, सरकार द्वारा प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।