मुजफ्फरनगर-खतौली विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक विक्रम सैनी मुश्किलों में घिरते नजर आ रहे हैं, उनकी विधानसभा सदस्यता खतरे में पड़ती नजर आ रही है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी द्वारा विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को लिखी चिट्ठी के बाद विक्रम सैनी की सदस्यता जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले ने आज़म खान की सदस्यता ले ली है, उसी के तहत अब विक्रम सैनी की सदस्यता भी खतरे में पड़ गयी है।
मुजफ्फरनगर में वर्ष 2013 में हुए कवाल कांड में भाजपा के खतौली से दूसरी बार विधायक विक्रम सैनी समेत 26 अन्य को मुकदमे में दोषी बनाया गया था, जिनमें से विक्रम सैनी समेत 11 अन्य अभियुक्तों को दो-दो साल की कैद और ₹10000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने मामले के 15 अन्य अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
आपको बता दें कि वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में गौरव और सचिन नामक युवकों की हत्या के बाद मुजफ्फरनगर समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंसा की लपटें फैल गई थी, इस मामले में विधायक विक्रम सैनी समेत 26 अन्य को आरोपी बनाया गया था। स्पेशल सांसद-विधायक कोर्ट के जज गोपाल उपाध्याय ने इस मामले में खतौली क्षेत्र से बीजेपी के विधायक विक्रम सैनी और अन्य 11 अभियुक्तों को भारतीय दंड विधान की धारा 336, 353, 147, 148, 149 और आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत दोषी करार देते हुए दो-दो साल की कैद और ₹10000 की सजा सुनाई थी। विक्रम सैनी समेत सभी अभियुक्तों को कुछ घंटे हिरासत में रखने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
रामपुर के सपा विधायक आजम खान को भी हेट स्पीच के एक मामले में 3 साल की सजा मिलने के बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अगले ही दिन उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी थी। इसी मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी ने सवाल उठा दिया है, जिससे विक्रम सैनी की समस्या बढ़ गई है।
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को लिखी एक चिट्ठी में जयंत चौधरी ने लिखा है कि आपके कार्यालय द्वारा त्वरित फैसला लेते हुए समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी गई है, जनप्रतिनिधित्व कानून लागू करने की आपकी सक्रियता की यद्यपि प्रशंसा की जानी चाहिए किंतु पूर्व में घटित हुए ऐसे ही मामले में आप निष्क्रिय नजर आते हैं, तो आप जैसे त्वरित न्याय करने वाले की मंशा पर सवाल खड़ा होता है कि क्या कानून की व्याख्या व्यक्ति और व्यक्ति के मामले में अलग-अलग रूप से की जा सकती है ?
जयंत चौधरी ने लिखा है कि मैं आपका ध्यान खतौली मुजफ्फरनगर से भाजपा विधायक विक्रम सैनी के प्रकरण की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा जिन्हें 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के लिए स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट द्वारा 11 अक्टूबर को जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत 2 साल की सजा सुनाई गई है। उस प्रकरण में आप की ओर से आज तक कोई पहल कदमी नहीं ली गई है। जयंत चौधरी ने सवाल किया है कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है ?, यह सवाल तब तक अस्तित्व में रहेगा जब तक आप भाजपा विधायक विक्रम सैनी के मामले में ऐसी ही पहल कदमी नहीं लेते।
जयंत चौधरी द्वारा यह सवाल उठाने के बाद विक्रम सैनी की सजा का मामला फिर तूल पकड़ गया है। सवाल उठता है कि क्या विक्रम सैनी को भी आजम खान की तरह सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता खत्म कर देनी चाहिए थी, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मदन शर्मा का कहना है कि हां, विक्रम सैनी की सदस्यता भी खत्म की जानी चाहिए थी। उन्होंने बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने लिली थॉमस वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा प्राप्त करने पर यह प्रावधान लागू कर रखा है।
मुज़फ्फरनगर के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल जिंदल ने बताया कि लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 के सेक्शन 8 के उप सेक्शन 3 में यह प्रावधान है कि यदि किसी सांसद या विधायक को 2 साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएगी, लेकिन इसी धारा के उप सेक्शन 4 में यह प्रावधान था कि यदि 3 महीने के भीतर कोई उच्च अदालत स्थगन आदेश जारी कर दे तो सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन लिली थॉमस अधिवक्ता एवं लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई 2013 को पारित अपने निर्णय में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उप धारा 4 को ही ख़त्म कर दिया है, जिसके कारण अब धारा 3 के तहत 2 वर्ष से अधिक की सजा पर तत्काल सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। कोर्ट ने इन दागी प्रत्याशियों को एक राहत जरूर दी थी कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला इनके पक्ष में आएगा तो इनकी सदस्यता स्वत ही वापस हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिपेक्ष्य में जयंत चौधरी द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को लिखी चिट्ठी के बाद विक्रम सैनी की सजा का मामला फिर तूल पकड़ गया है। कानून के अन्य जानकारों का भी मानना है कि यदि रालोद ने इस मामले को गंभीरता से उठाया, तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर विधानसभा अध्यक्ष को विक्रम सैनी की सदस्यता भी समाप्त करनी होगी। रालोद नेताओं का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पत्र के बाद राष्ट्रीय लोकदल इस मुद्दे को लेकर सभी कानूनी पहलुओं पर भी विचार कर रहा है और विधानसभा अध्यक्ष को कानूनी प्रतिवेदन भी दिया जाएगा।