नई दिल्ली. भारत में बहुत कम उम्र की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने के मामले बहुत ज्यादा सामने आ रहे हैं. यह उनके शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकते हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स ने भी गर्भाशय निकलवाने के बढ़ते ट्रेंड पर चिंता जताई है.
भारत सरकार में डीडीजी अमिता बाली वोहरा ने कहा कि जब महिलाओं के स्वास्थ्य की बात आती है तो परिवार हमारे समाज में प्रमुख फैसले लेने वाले होते हैं. इसलिए परिवारों को ऐसे मुद्दों के बारे में जागरुक करने की जरूरत है ताकि महिलाओं को बेहतर डॉक्टरी सलाह मिलने में मदद मिल सके. एनएफएचएस के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, गर्भाशय निकलवाने वाली महिलाओं की औसत आयु 34 वर्ष होने का अनुमान है. एक प्रोग्राम में अमिता बाली वोहरा ने कहा, ज्यादातर युवा महिलाएं गर्भाशय निकलवा रही हैं. इन महिलाओं को शिक्षित और मार्गदर्शन करने के लिए गाइडलाइंस होनी चाहिए. यह प्रोग्राम राष्ट्रव्यापी अभियान ‘प्रिजर्व द यूटरस’ के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था.
‘प्रिजर्व द यूटेरस’ अभियान का मकसद महिलाओं और स्त्रीरोग संबंधी रोगों और हिस्टेरेक्टॉमी के प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना है ताकि महिलाएं सशक्त बने. रिपोर्ट के अनुसार, हिस्टेरेक्टॉमी यानी गर्भाशय निकलवाने के बाद कई महिलाएं पीठ दर्द, योनि स्राव, कमजोरी, यौन स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती हैं. कम उम्र में गर्भाशय निकलवाने से हृदय रोग, स्ट्रोक और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा अधिक बढ़ जाता है. इसके अलावा महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य की भी परेशानी होती है.
बायर जाइडस के मैनेजमेंट डायरेक्टर मनोज सक्सेना ने कहा कि हमारी कंपनी महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनोवेशन करने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं आईएचडब्ल्यू काउंसिल के सीईओ कमल नारायण ने कहा कि पैसों के लिए महिलाओं के स्वास्थ्य को जोखिम में डालकर उसके शरीर और उसके स्वास्थ्य पर अधिकार की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के साथ इस तरह की पहल स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में एक लंबा रास्ता तय करेगी.