नई दिल्ली :उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज भड़काऊ भाषण देने के मुकदमे को वापस लिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि बिना हाई कोर्ट की इजाजत के राज्य सरकार मुकदमा वापस नहीं ले सकती. सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमे के फैसले में हो रही देरी पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इसमें कोर्ट के सलाहकार वकील विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को पढ़कर सुनाई.

हंसारिया ने कोर्ट को बताया कि उत्तर प्रदेश में चार बीजेपी नेता – संगीत सोम, कपिल देव, सुरेश राणा और साध्वी प्राची के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का मुकदमा राज्य सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है. ये सभी मुकदमे मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े हैं. उत्तर प्रदेश ने 76 मामलों और कर्नाटक ने 61 मुकदमों को वापस लेने का आदेश दिया है. इसी तरह कई अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना ने यूपी सरकार के इस फैसले पर ऐतराज जताया. सुप्रीम कोर्ट ने फिर आदेश दिया कि नेताओं के खिलाफ दर्ज कोई भी मुकदमा संबंधित हाई कोर्ट के आदेश के बिना वापस नहीं लिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के जो भी जज सांसद या विधायक के खिलाफ मुकदमा सुन रहे हैं वो सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक सुनवाई करते रहेंगे. बिना फैसला दिए वो रिटायर नहीं होंगे.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की भूमिका पर भी कड़ी नाराजगी जताई. कोर्ट ने सीबीआई, ईडी और एनआईए को इस बाबत हलफनामा दाखिल करने को कहा था कि कितने नेताओं के खिलाफ उनके विभाग में मुकदमा दर्ज है और उसकी स्थिति क्या है, लेकिन सीबीआई ने अभी तक हलफनामा जमा नहीं किया है.

CJI ने कहा कि जब ये मामला शुरू हुआ था तो उम्मीद की गई थी कि केंद्र सरकार संजीदगी से काम करेगी, लेकिन पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया है. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जल्द हलफनामा दाखिल करने का भरोसा दिलाया है.