बागपत। किसानों की आवाज को रालोद अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रहे चौधरी अजित सिंह हमेशा बुलंद करते रहे। उनके लिए सरकारों से लड़ते रहे। यही कारण है कि आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि बागपत को उनके बेटे व पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ने वर्ष 1989 में पहली बार सांसद बनकर संभाला था। वह वीपी सिंह सरकार में उद्योग मंत्री थे। इसके बाद वह लगातार चुनाव जीतते रहे और वर्ष 1996 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बने। वर्ष 1998 में उनको सोमपाल शास्त्री ने हराया।

इसके बाद वर्ष 1999 के चुनाव में लाखों वोटों से जीत दिलाई। उसके बाद से वह वर्ष 2014 तक सांसद रहे और वर्ष 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री बने। वर्ष 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार में वह नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे। इसके बाद उनको जीत नहीं मिल सकी और वर्ष 2014 में बागपत व वर्ष 2019 में मुजफ्फरनगर से चुनाव हारे। 20 अप्रैल 2021 को कोरोना के कारण उनका निधन हुआ।

चौधरी अजित सिंह किसानों के लिए कई बार सरकार से टकराए और बड़े आंदोलन किए। गन्ने का भाव बढ़वाने, कैपेसिटर चार्ज के खिलाफ, किसानों का ऋण माफ कराने समेत अन्य कई आंदोलन किए। सरकार को किसानों के सामने झुकना पड़ा। चौधरी अजित सिंह ने कृषि मंत्री रहते हुए किसानों के लिए कम ब्याज पर ऋण की व्यवस्था कराई। राष्ट्रीय महासचिव सुखबीर सिंह गठीना बताते हैं कि उन्होंने बागपत में चौधरी चरण सिंह पशु अनुसंधान केंद्र बनवाया तो मलकपुर में शुगर मिल भी उनकी देन है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सबसे ज्यादा सडक़ें बागपत में बनवाई। रालोद नेता राजू सिरसली कहते हैं कि आज भी चौधरी अजित सिंह बागपत के लोगों के दिलों में बसते है और लोग उनको याद करते हैं।

चौधरी अजित सिंह हमेशा चुनाव प्रचार थमने से पहले दिन बड़ौत के सी फील्ड में रैली करते थे। जिसमें अपार भीड़ उमड़ती थी। उससे चुनावी रुख तय हो जाता था। कहा जाता है कि मतदान से पहली रात को चौधरी चरण सिंह लोगों के सपने में आते हैं और अजित सिंह का साथ देने के लिए कहते थे।

मेरठ मंडल के पूर्व महासचिव ओमबीर सिंह ढाका बताते हैं कि जब चौधरी अजित सिंह वर्ष 2014 में चुनाव हार गए। उसके बाद 12 नंबर तुगलक रोड दिल्ली से उनको सरकारी कोठी खाली करने के लिए नोटिस दिया गया था। इसका पता चलते ही कार्यकर्ताओं में रोष फैल गया और कोठी को खाली कराने से रोकने के लिए भीड़ ने दिल्ली की तरफ कूच कर दिया। मुरादनगर में पुलिस ने खूब लाठियां बरसाई और सैंकड़ों कार्यकर्ता घायल हुए थे।