चरथावल (मुजफ्फरनगर)। खेतों में दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का आवाजाही किसानों को लुभा रही है। साधारण बगुले (कैटल इगर्ट) के साथ सितकंठ महाबक (वूली नेक्स स्ट्रार्क) की खेतों में आमद देखी जा रही है। आमतौर पर कम नजर आने पक्षियों को चरथावल के खेतों नजर आना ग्रामीणों को उत्साहित करने वाला है।
कुटेसरा और घिस्सुखेड़ा के नहर किनारे रंग-बिरंगे पक्षियों का खेतों में मंडराना मनमोह रहा है। इन दिनों ईख बुआई के लिए किसान खेतों में पानी दे रहे है। नहर किनारे घिस्सुखेड़ा और कुटेसरा, दहचंद के खेतों में दुर्लभ पक्षियों का झुंड देखे जा रहे है। ग्रामीण प्रफुल्लित है।
बुजुर्ग इलम चंद त्यागी और सुक्खड़ त्यागी बताते है करीब दो दशक पहले अकसर खेतों और बागों में रंग-बिरंगे पक्षी मन को लुभाते थे। खेतों में किसानों की खेतीबाड़ी करने में इनकी मौजूदगी शुभ मानी जाती थी। मगर, बदलाव की बयार में अब साधारण बगुले भी गुम हो गए है। काले रंग के महाबक तो विरले ही मिलते है। इसी तरह बागों से मोर भी बहुम कम दिखते है।
घिस्सुखेड़ा निवासी देहरादून विश्वविद्यालय के ग्राफिक एरा के पक्षी विशेषज्ञ आशीष आर्य का कहना है कि चरथावल क्षेत्र में गेहूं के खेतों में सितकंठी महाबक देखा जा रहा है। खासकर सर्दियों के दिनों यह प्रजाति नदियों, दलदल, झीलों, चावल के खेतों, बाढ़ के मैदानों और चरागाहों, दलदली जंगल जैसे आर्द्र भूमियों में पाई जाती है। यह प्रजाति अफ्रीका के तटीय क्षेत्रों में फरवरी-मई के मध्य प्रजनन करती है। इस प्रजाति का उद्भव श्रीलंका के तराई वाले गीले क्षेत्र में हुआ था। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इस प्रजाति को संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में रखा है।
जिले में हैदरपुर वेटलैंड में सैकड़ों प्रजातियों के विदेशी पक्षियों की मेहमानवाजी लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु माना जाता है। मगर, सामान्य क्षेत्रों में ज्यादातर प्रकृति की सौम्य बनाने में सतरंगी पशु-पक्षियों का विलुप्त होना लोगों को मायूसी देता है। गुम होने का एक बड़ा कारण पेड़ों के अंधाधुंध कटान और खेतों में कीटनाशक के प्रयोग माना जाता है। इसी वजह से गांवों की पगडंडियों पर पक्षियों का काल कलरव कम सुनाईं पड़ता है।