मुजफ्फरनगर। संयुक्त किसान मोर्चा रविवार पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसानों की बड़ी रैली का आयोजन करेगा। किसान नेताओं का दावा है कि यह रैली एतिहासिक होगी और इसमें उत्तर प्रदेश विधानसभा को ध्यान में रखते हुए कई बड़े निर्णय लिए जाएंगे। इस रैली में पूरे देश के लाखों किसानों के भाग लेने का दावा किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर की किसान रैली में नई राजनीतिक पार्टी बनाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन किसान अभी किसी राजनीतिक दल के गठन का एलान नहीं करेंगे। इसकी बजाय पश्चिम बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश के सभी किसानों से भाजपा के विरुद्ध लामबंद होने की अपील की जाएगी। उत्तर प्रदेश से इसकी शुरुआत करने के बाद यही मुहिम उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में भी चलाई जाएगी।

किसान संयुक्त मोर्चा के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक किसान मोर्चा के नेताओं की शुक्रवार को हुई शीर्ष बैठक में इस विकल्प पर गंभीरता से विचार किया गया कि क्या किसानों को अपनी राजनीतिक पार्टी बना लेनी चाहिए। मोर्चा के कुछ सदस्यों का मत था कि सभी राजनीतिक दल सत्ता में आने पर उद्योगपतियों के लिए काम करते हैं, लेकिन विपक्ष में आने पर किसानों के हित की बात करने लगते हैं। ऐसे में किसानों को अपनी पार्टी बना लेनी चाहिए, जो हर राज्य में हर समय केवल किसानों के मुद्दे पर राजनीति करे।

इन किसान नेताओं की यह भी राय थी कि अगर किसी राजनीतिक दल का गठन किया जाता है, तो पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में पहले ही दौर में अच्छी संख्या में अपने नेताओं को जिताया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में भी पश्चिमी हिस्से और पूर्वांचल के एक हिस्से में किसानों की पार्टी को अच्छी सफलता मिल सकती है। यह सफलता सरकार बनाने लायक भले ही न हो, लेकिन इतनी अवश्य हो सकती है कि किसी भी सरकार को उसका समर्थन लेने के लिए मजबूर किया जा सके।

लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के कई नेताओं की स्पष्ट राय थी कि जैसे ही किसान नेता अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन करेंगे, भाजपा उस पर यह कहकर हमला करेगी कि इस आंदोलन की शुरुआत ही राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर हुई थी। पूर्व में एक राजनीतिक दल में उच्चस्तरीय भूमिका निभा चुके एक किसान नेता की स्पष्ट राय थी कि किसी राजनीतिक दल का गठन करते ही इस आंदोलन का उद्देश्य नष्ट हो जाएगा और इसका प्रभाव किसानों पर ही कम हो जाएगा। इससे जिन तीन कानूनों को खत्म कराने की मांग को लेकर इसका गठन किया गया था, वह हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी।
इन नेताओं का तर्क था कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी किसानों से किसी एक दल को समर्थन देने की बात केवल इसीलिए नहीं कही गई थी, क्योंकि इससे किसानों को किसी एक दल के साथ जो़ड़ दिया जाता। इससे आंदोलन की साख प्रभावित हो सकती थी। इसी बात को ध्यान में रखकर इस बार भी राजनीतिक दल के गठन या किसी दल विशेष के लिए वोट करने की अपील न किए जाने का सुझाव दिया गया है। बैठक में एक किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी की पूर्व में चुनाव में उतरने की घोषणा करने के बाद की परिस्थितियों पर भी विचार किया गया। ज्यादातर किसान नेताओं का कहना था कि उस घोषणा के बाद आंदोलन को लेकर अच्छी धारणा नहीं बनी थी। उस अनुभव को ध्यान में रखते हुए भी किसान नेताओं ने किसी नए राजनीतिक दल के गठन से दूर रहने का सुझाव दिया।

इन नेताओं का यह भी कहना था कि चुनाव में भारी धन खर्च होता है, और इसके लिए एक सुनियोजित-सुनियंत्रित संगठन की आवश्यकता होती है, जबकि किसानों के पास न तो इतना पैसा है, और न ही राजनीतिक संगठन के रूप में काम करने का कोई अनुभव। ऐसे में अगर चुनाव में उतरने की बात सोची जाती है तो इससे लाभ की बजाय नुकसान हो सकता है। हालांकि बैठक में सभी नेता इस बात पर अवश्य सहमत थे कि अगर वर्तमान रणनीति कारगर होती नहीं दिखती है तो बाद में इस पर कोई निर्णय लिया जा सकता है। फिलहाल, मुजफ्फरनगर से इस तरह की कोई घोषणा नहीं की जाएगी।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रविवार की किसान महापंचायत से पूरे प्रदेश के किसानों से अपने ‘दुश्मन’ को पहचानने की अपील की जाएगी। पश्चिम बंगाल की तर्ज पर किसान नेता उत्तर प्रदेश के हर गांव, ब्लॉक, जिला स्तर पर एक-एक कमेटियों का गठन करेंगे। किसान नेता इन कमेटियों की अगुवाई में लगातार जनसभा करेंगे और किसानों को कृषि कानून के बारे में बताएंगे। किसान नेता किसानों को भाजपा के विरुद्ध मतदान करने की अपील तो करेंगे, लेकिन किसी एक दल के पक्ष में वोट करने की बात नहीं कहेंगे। किसानों से विधानसभा क्षेत्रवार जो भी भाजपा उम्मीदवार को हराने की काबिलियत रखता हो, उस उम्मीदवार के लिए वोट करने की अपील की जाएगी।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि किसान नेता आज तक यह नहीं बता पाए हैं कि इन कृषि कानूनों में गलत क्या है? वे आज तक यह नहीं बता पाए हैं कि इन कृषि कानूनों से किसानों की जमीन उद्योगपतियों के पास चले जाने की बात कहां लिखी गई है। यह केवल प्रोपेगेंडा है जो सफल नहीं हो पाया है। यही कारण है कि इन किसान नेताओं को पंजाब, हरियाणा के अलावा पूरे प्रदेश के किसानों से कहीं भी समर्थन नहीं मिला।

प्रेम शुक्ला ने कहा कि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा दो सीट से 77 सीटों तक पहुंची है। यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए बड़ी उपलब्धि है, इसे किसी तरह कमतर करके नहीं आंका जा सकता। उलटे, जिन राजनीतिक दलों कांग्रेस और वामपंथी दलों ने किसानों का समर्थन किया था, वे शून्य पर पहुंच गए। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों के लिए भारी काम किया है और यहां किसानों के नाम पर कोई प्रोपेगेंडा सफल नहीं होगा।