लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के परिवारों को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी पर समझौता कराकर सरकार ने राहत की सांस ली है। लेकिन सरकार की मुश्किलें अभी समाप्त नहीं हुई हैं। किसानों की रणनीति है कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जगह-जगह पर भाजपा नेताओं का इसी तरीके से विरोध किया जाएगा। उन्हें उनके क्षेत्रों में चुनाव प्रचार नहीं करने दिया जाएगा। आशंका है कि यदि इसी तरीके से भाजपा नेताओं को प्रचार करने से रोका गया तो किसानों और भााजपा कार्यकर्ताओं में टकराव बढ़ सकता है। इससे कई अन्य जगहों पर भी लखीमपुर खीरी जैसी अप्रिय स्थिति पैदा हो सकती है। इस स्थिति से निपटना सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता डॉ. आशीष मित्तल ने अमर उजाला से कहा कि हम अपनी अगली रणनीति का खुलासा मृत किसानों के ‘दसवीं संस्कार’ पर या इसके एक दिन बाद करेंगे। इसके लिए संयुक्त किसान मोर्चा जल्दी ही बैठक कर निर्णय लेंगे। सरकार ने अभी तक आरोपी आशीष मिश्रा पर केवल केस दर्ज किया है। अभी उसे गिरफ्ताकर कर जेल नहीं भेजा गया है। उन्होंने कहा कि यह आरोपी को बचाने की साजिश है। यदि ‘दसवीं’ तक उसे जेल नहीं भेजा जाता है, तो यह आंदोलन फिर भड़क सकता है। सरकार को हर हाल में किसानों की हत्या के दोषी लोगों पर कार्रवाई करनी होगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही एलान कर दिया था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं को उनके क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोका जाएगा, उन्हें चुनाव प्रचार नहीं करने दिया जाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा नेताओं का इसी तरीके से विरोध हो चुका है। किसान लखीमपुर की घटना के बाद भी इसी तरीके से भाजपा नेताओं को उनके क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करने देंगे।

क्या इस तरीके से विरोध करने पर किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं में टकराव नहीं बढ़ेगा, और प्रदेश में अन्य जगहों पर भी लखीमपुर जैसी स्थिति नहीं बनेगी? इस सवाल पर किसान नेता ने कहा कि यह कानून-व्यवस्था का प्रश्न है और इसे सरकार और प्रशासन को समझना है कि उन्हें यह मामला कैसे हल करना है। हम कहीं भी हिंसक तरीका उपयोग नहीं करेंगे, लोकतांत्रिक तरीके से भाजपा नेताओं-मंत्रियों को काले झंडे दिखाएंगे और उन्हें आगे बढ़ने से रोकेंगे। लेकिन जब तक केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों की वापसी पर सहमत नहीं होती है, उनका यह विरोध इसी प्रकार से जारी रहेगा।
महापंचायतें होंगी

आगामी 10 अक्तूबर को प्रयागराज में खनिक श्रमिकों की एक महापंचायत बुलाई गई है। इसमें प्रयागराज, विंध्य, मिर्जापुर और मध्यप्रदेश के सतना और आसपास के इलाकों के खनिक श्रमिक भारी संख्या में शामिल होंगे। इसमें केंद्र-राज्य सरकारों की उस नीति का विरोध किया जाएगा जिसके अंतर्गत इन पहाड़ों का खनन बड़ी-बड़ी कंपनियों को दिया जा रहा है। इससे यहां रहने वाले सामान्य गरीब किसानों-श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो रही है। इस महापंयायत के माध्यम से सरकारों को चेतावनी दी जाएगी कि वे बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को पहाड़ों के खनन का अधिकार देने से बचें और यहां के मूल कोल जनजाति और अन्य सामान्य किसानों को खनन का अधिकार दें। ये मांगे न मानने से विरोध को और तेज किया जाएगा।

इसके बाद 18 अक्तूबर को कौशांबी में महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद एक-एक कर अन्य क्षेत्रों में महापंचायत बुलाकर किसानों को कृषि कानूनों के विरुद्ध लामबंद किया जाएगा और विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरोध का रास्ता अपनाया जाएगा।

किसानों की इस रणनीति से टकराव की आशंका पर टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि लखीमपुर की घटना पूरी तरह राजनीतिक ष़डयंत्र है। जनता ने देखा कि किस प्रकार किसानों के पीछे छिपकर कुछ लोगों द्वारा जानबूझकर इस तरह की परिस्थिति पैदा की गईं, जिससे हिंसा हो और सरकार की बदनामी हो। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है, वह सबकुछ देख रही है और इसका अंतिम फैसला उसी की अदालत (विधानसभा चुनाव) में होगा।

नेता ने कहा कि योगी आदित्यनाथ की छवि कठोर प्रशासक की रही है और इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर उनकी इस साख पर सवाल उठाने की कोशिश हो रही है। जनता यह देख रही है कि विपक्ष किस तरह यहां की घटनाओं पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि विपक्ष की यह राजनीति काम नहीं आएगी।