उत्‍तर कोरिया से लेकर रूस तक दुनियाभर में हाइपरसोनिक मिसाइलों के परीक्षण का दौर तेज हो गया है। हालत यह है कि अब तक इस तकनीक से परहेज करने वाला अमेरिका खुद भी लगातार हाइपरसोनिक मिसाइलों के विकास में लगा हुआ है। वहीं भारत का सबसे बड़ा दुश्‍मन चीन हाइपरसोनिक मिसाइलों की तैनाती करने में जुटा हुआ है। इस रेस में बने रहने के लिए भारत के लिए ब्रह्मास्‍त्र बनाना मजबूरी होता जा रहा है।

हिंदू धर्म में मान्‍यता है कि प्राचीन काल में ब्रह्मास्‍त्र एक ऐसा हथियार था जिसका कोई तोड़ नहीं था। एक बार वार करने पर शत्रु का नाश तय था। अब कुछ यही बात हाइपरसोनिक मिसाइलों के बारे में भी विशेषज्ञ कह रहे हैं। इसी वजह से इसे पाने की होड़ भी दुनिया में तेज हो गई है। किम जोंग उन की तानाशाही वाले उत्‍तर कोरिया ने हाल ही में हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण किया है। इससे दुनियाभर में टेंशन बढ़ गई है। उत्‍तर कोरिया एक परमाणु हथियार संपन्‍न देश है और इस परीक्षण से वैश्विक परमाणु संतुलन बिगड़ सकता है।

इस बीच रूस ने भी सोमवार को अपनी जिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल का पहली बार पनडुब्‍बी से सफल परीक्षण किया है। रूस हाइपरसोनिक मिसाइलों की रेस में सबसे आगे चल रहा है। इसके बाद चीन और अमेरिका का नंबर आता है। इन देशों के अलावा 5 अन्‍य देश हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में जुटे हुए हैं। इनमें भारत भी शामिल है। दरअसल, परंपरागत बलिस्टिक मिसाइल की तरह से ही हाइपरसोनिक मिसाइलें भी परमाणु हथियार दागने में सक्षम हैं लेकिन उनकी स्‍पीड़ ध्‍वनि की रफ्तार से 5 गुना ज्‍यादा होती है।

यही नहीं परंपरागत मिसाइलों को अपने लक्ष्‍य तक पहुंचने के लिए अंतरिक्ष में ऊंचाई तक जाना होता है। इसके विपरीत हाइपरसोनिक मिसाइल वायुमंडल की निचली सतह पर उड़ान भरते हुए ज्‍यादा तेजी से अपने लक्ष्‍य पर हमला बोलती है। सबसे अहम बात यह है कि परंपरागत मिसाइलें धीमी गति से चलती हैं और उन्‍हें रेडॉर और एयर डिफेंस सिस्‍टम की मदद से ट्रैक करना आसान होता है। वहीं हाइपरसोनिक मिसाइल लगातार अपना रास्‍ता बदलती रहती है और इसकी स्‍पीड बहुत ज्‍यादा होती है जिससे उसे ट्रैक नहीं किया जा सकता है। बता दें कि अमेरिका, रूस, चीन समेत दुनिया के कई देशों ने परंपरागत मिसाइलों को ट्रैक करके उसे तबाह करने की क्षमता हासिल कर ली है। रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्‍टम को दुनिया में सबसे अच्‍छा माना जाता है।

द नेशनल इंटरेस्ट मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रूस के पांचवी पीढ़ी के पहले स्टील्थ लड़ाकू विमान सुखोई Su-57 का मास प्रोडक्शन शुरू हो गया है। जल्द ही इसे रूसी एयरफोर्स में भी शामिल कर लिया जाएगा। कुछ साल बाद इसे अंतरराष्ट्रीय हथियारों के बाजार में भी उतारा जाएगा। मैगजीन ने आगे लिखा है कि जाहिर है कि यह खबर अमेरिका के लिए अच्छी नहीं है, क्योंकि इससे नाटो के कई सामरिक ठिकाने असुरक्षित हो जाएंगे।

अपनी रिपोर्ट में द नेशनल इंटरेस्ट ने रूस की सुखोई Su-57 को अपने क्लास में सर्वश्रेष्ठ एयर सुपिरियरिटी वाला लड़ाकू विमान करार दिया है। कहा गया है कि किसी भी अन्य विमानों के मुकाबले डॉगफाइट के दौरान इस लड़ाकू विमान को बढ़त मिलेगी। यह भविष्य में नाटो देशों का मुख्य लड़ाकू विमान बनने वाले अमेरिका के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 को भी हरा सकता है।

रूस का Su-57 लड़ाकू विमान खर्च के मामले में भी लॉकहीड मॉर्टिन के F-35 से सस्ता है। इसकी डिजाइन और एवियोनिक्स भी ज्यादा एरोडॉयनामिक्स हैं। यह ऑफ्टरबर्नर का उपयोग किए बिना ही 2 मैक (लगभग 2500 किमी प्रति घंटे) की स्पीड पकड़ सकता है। यहां तक कि इसकी सबसोनिक रेंज 3500 किलोमीटर से भी अधिक है।

इसमें लगा एईएसए रडार और अन्य प्रणालियां पायलट को जरूरी जानकारी और सहायता उपलब्ध कराती हैं। यह विमान F-35 की अपेक्षा ज्यादा स्टील्थ तकनीकी से लैस है। जिस कारण यह अपने लक्ष्य को चुपके से खोजकर उसकी ट्रैकिंग कर नष्ट कर सकता है। विमान में 101KS इन्फ्रारेड सर्च एंड सिस्टम भी लगा हुआ है, जो छिपे हुए दुश्मनों को भी खोजने और ट्रैक करने में सक्षम है। विमान की स्पीड और एरोडॉयनमिक इसे घातक शिकारी बनाता है।

रूस का सुखोई Su-57 लड़ाकू विमान कई तरह के घातक हथियारों से लैस है। इसे कई तरह के हथियारों की पूरी श्रृंखला को लेकर उड़ने के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें शॉर्ट रेंज की एयर टू एयर मिसाइलों से लेकर 150 किलोमीटर तक जमीन पर हमला करने वाली एयर टू ग्राउंड अटैक मिसाइले भी शामिल हैं। यह रूसी जेट विम्पेल आर -37 एम हाइपरसोनिक मिसाइल के अलावा परमाणु हमला करने में सक्षम Kh-47M2 Kinzhal मिसाइल से भी हमला करने में सक्षम है।

हाइपरसोनिक मिसाइलों की खासियत यह है कि यह परंपरागत बमों को भी अन्‍य मिसाइलों की तुलना में ज्‍यादा तेजी और सटीकता के साथ अपने लक्ष्‍य पर गिरा सकती हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलें परमाणु बम भी गिराने में सक्षम हैं जिससे दुनिया में परमाणु युद्ध शुरू होने का खतरा पैदा हो जाएगा। हाइपरसोनिक मिसाइलों का खतरा अब दुनिया के सामने मुंह बाए खड़ा है। रूस, चीन, अमेरिका और अब उत्‍तर कोरिया ने हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण किया है। अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस जर्मनी, ऑस्‍ट्रेलिया, भारत और जापान हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम कर रहे हैं।

वहीं ईरान, इजरायल और दक्षिण कोरिया ने इस तकनीक पर मूलभूत शोध कर लिया है। रूस इन सबमें सबसे आगे है। रूस ने सोमवार को अपनी जिरकॉन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया था। इस मिसाइल को पहली बार पनडुब्‍बी से दागा गया था। अमेरिकी रिपोर्ट कहती है कि चीन बहुत तेजी से हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम कर रहा है। दोनों ने कुछ मिसाइलों को तैनात भी कर दिया है। अमेरिका भी अगले 5 साल में 40 परीक्षण करना चाहता है।
अमेरिका ने बनाई ‘महाविध्वंसक’ हाइपरसोनिक मिसाइल, 6174 किमी प्रति घंटा है रफ्तार

लेफ्टिनेंट जनरल एल नील थर्गुड ने कहा कि हाइपरसोनिक हथियार भविष्य के युद्ध को काफी हद तक बदलने की क्षमता रखता है। इसलिए, इन मिसाइलों की काबिलियत को देखते हुए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय इनके विकास पर जोर दे रहा है। यह हाइपरसोनिक मिसाइल 5 मैक से ज्यादा की स्पीड पर उड़ान भरने में सक्षम है। इसका मतलब है कि यह मिसाइल एक सेकेंड में लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत इसका उड़ान पथ है। यह निश्चित पथ पर न बढ़कर उसे कभी भी चेंज कर सकती है। इस कारण ऐसी मिसाइल को डिटेक्ट करना किसी भी एंटी मिसाइल सिस्टम के लिए आसान नहीं होगा। हाई स्पीड पर उड़ने के कारण रडार भी इसकी वास्तविक लोकेशन का पता नहीं लगा पाएगें।

अमेरिका को चीन की डीएफ-17 हाइपरसोनिक मिसाइल से खतरा है। इस कारण वह अपनी मिसाइल डिफेंस टेक्नोलॉजी को अपग्रेड करने की कोशिशों में जुटा है। यह हाइपरसोनिक मिसाइल लंबी दूरी तक सटीक निशाना लगाने में माहिर है। ऐसे में अगर चीन हमला करता है तो अमेरिका को गुआम या जापान में मौजूद अपने बेस की सुरक्षा के लिए तगड़े इंतजाम करने पड़ेंगे। चीन की DF-17 मिसाइल 2500 किलोमीटर दूर तक हाइपरसोनिक स्पीड से अपने लक्ष्य को भेद सकती है। इस मिसाइल को पहली बार पिछले साल चीन की स्थापना के 70वें वर्षगांठ के अवसर पर प्रदर्शित किया गया था। यह मिसाइल 15000 किलोग्राम वजनी और 11 मीटर लंबी है, जो पारंपरिक विस्फोटकों के अलावा न्यूक्लियर वॉरहेड को भी लेकर जा सकती है। सरल भाषा में कहें तो यह मिसाइल परमाणु हमला करने में भी सक्षम है।

हाइपरसोनिक मिसाइल आवाज की रफ्तार (1235 किमी प्रतिघंटा) से कम से कम पांच गुना तेजी से उड़ान भर सकती है। ऐसी मिसाइलों की न्यूनतम रफ्तार 6174 किमी प्रतिघंटा होती है। ये मिसाइलें क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइल दोनों के फीचर्स से लैस होती हैं। लॉन्चिंग के बाद यह मिसाइल पृथ्वी की कक्षा से बाहर चली जाती है। जिसके बाद यह टारगेट को अपना निशाना बनाती है। तेज रफ्तार की वजह से रडार भी इन्हें पकड़ नहीं पाते हैं।

आम मिसाइलें बैलस्टिक ट्रैजेक्‍टरी फॉलो करती हैं। इसका मतलब है कि उनके रास्‍ते को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। इससे दुश्‍मन को तैयारी और काउंटर अटैक का मौका मिलता है जबकि हाइपरसोनिक वेपन सिस्‍टम कोई तयशुदा रास्‍ते पर नहीं चलता। इस कारण दुश्‍मन को कभी अंदाजा नहीं लगेगा कि उसका रास्‍ता क्‍या है। स्‍पीड इतनी तेज है कि टारगेट को पता भी नहीं चलेगा। यानी एयर डिफेंस सिस्‍टम इसके आगे पानी भरेंगे।

अमेरिका द्वारा 30 साल पुरानी इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस (आईएनएफ) संधि से खुद को अलग कर लेने के बाद दुनियाभर में हाइपरसोनिक मिसाइलों को बनाने की होड़ मच गई है। संधि से अलग होने के एक सप्ताह बाद ही 20 अगस्त को अमेरिका ने 500 किलोमीटर से अधिक रेंज वाली एक क्रूज मिसाइल का परीक्षण कर रूस को नाराज कर दिया था। जिसके जवाब में उसने दिसंबर 2019 में ध्वनि से गति से 27 गुना ज्यादा तेज अवनगार्ड हाइपरसोनिक मिसाइल को अपनी सेना में शामिल किया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिसाइल के आने से वैश्विक परमाणु संतुलन नहीं बदलेगा लेकिन इसको दागने के लिए एक और प्रभावी हथियार दुनिया को मिल गया है। दुश्‍मन को यह पता नहीं चल पाएगा कि उसके ऊपर दागी गई हाइपरसोनिक मिसाइल परमाणु बम से लैस है या नहीं। अमेरिका ने माना है कि उसके वर्तमान मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम हाइपरसोनिक मिसाइलों का पता लगाकर उसका खात्‍मा करने में सक्षम नहीं हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि हाइपरसोनिक एक क्रांतिकारी बदलाव है लेकिन गेमचेंजर नहीं है।

वीनस एयरोस्पेस कॉर्प नाम के इस एविएशन स्टॉर्टअप ने बताया कि उनका हाइपरसोनिक स्पेसप्लेन अमेरिका के लॉस एंजिल्स से जापान की राजधानी टोक्यो तक यात्रियों को लगभग एक घंटे में ले जाने में सक्षम होगा। इस समय सबसे तेज फ्लाइट से भी इस दूरी को तय करने में 11 से 13 घंटे का समय लगता है। अगर यह प्रॉजेक्ट सफल होता है तो इससे यात्रियों का न केवल समय बचेगा, बल्कि इससे वैश्विक विमानन उद्योग को भी बड़ी ताकत मिलेगी। यह स्टार्टअप अमेरिका के प्रसिद्ध वर्जिन ऑर्बिट एलएलसी के पूर्व कर्मचारियों सारा डग्लेबी (कोड-राइटिंग लॉन्च इंजीनियर) और उनके पति एंड्रयू डग्लेबी (लॉन्च, पेलोड और प्रोपल्शन ऑपरेशंस) के दिमाग की उपज है। वर्जिन ऑर्बिट एलएलसी कंपनी छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की सर्विस उपलब्ध करवाती है।

इस एविएशन स्टॉर्टअप को शुरू करने वाले दंपती ने बताया कि एक बार वे यात्रा में ज्यादा समय लगने के कारण सारा की दादी के 95वें जन्मदिन में शामिल नहीं हो सके थे। इस कारण उन्होंने यात्रा के समय को कम करने के लिए हाइपरसोनिक स्पेसप्लेन को बनाने के लिए वीनस एयरोस्पेस कॉर्प नाम के इस एविएशन स्टॉर्टअप को शुरू किया। उन्होंने बताया कि अभी तक हमने सुपरसोनिक स्पीड से उड़ने वाले जेट के बारे में ही सुना है। ये विमान आवाज की रफ्तार से भी तेज गति से उड़ान भरते हैं। हालांकि, हम जिस प्लेन को विकसित करने के काम में जुटे हुए हैं वो इससे भी काफी तेज हाइपरसोनिक रफ्तार से उड़ेगा।

इस दंपती के स्टॉर्टअप में बनाए जाने वाले प्लेन की अधिकतम रफ्तार 14,484 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है। यह ध्वनि की गति से लगभग 12 गुना ज्यादा है। बता दें कि ध्वनि की रफ्तार 1234 किमी प्रति घंटा होती है। वीनस में अभी 15 कर्मचारी हैं, इनमें से अधिकतर स्पेस इंडस्ट्री के दिग्गज हैं। उन्हें अमेरिका के प्राइम मूवर्स और ड्रेपर एसोसिएट्स जैसी वेंचर कैपिटल फर्मों से निवेश प्राप्त हुआ है। डग्लेबी का कहना है कि उनकी तकनीक अतीत में दूसरी कंपनियों के किए गए प्रयासों से काफी अलग होगी। उनका दावा है कि वे अधिक एफिसिएंट होंगे और विमान के लैंडिंग गियर्स और विंग्स के अतिरिक्त वजन को बेहतर ढंग से संभालने वाले होंगे। इस विमान के लिए बनाया जा रहा इंजन कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री को काफी बड़ा बूस्ट प्रदान करेगा।

हालांकि, इस परियोजना के पूरा होने में अभी भी समय है। विमान का आकार अभी पूरा नहीं हुआ है और वे इस गर्मी में इस विमान के थ्रीडी मॉडल के परीक्षण की योजना बना रहे हैं। उन्हें अमेरिकी वायु सेना से एक छोटा सा शोध अनुदान भी प्राप्त हुआ है और वे रक्षा विभाग से अतिरिक्त धन की तलाश में हैं। इस परियोजना में एक दशक या उससे अधिक समय लगने की उम्मीद है।

चीन के तेजी से हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने से भारत के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है। चीन लद्दाख में दादागिरी दिखा रहा है और उसने बड़े पैमाने पर हथियारों की तैनाती की है। ऐसे में भारत के लिए इस ब्रह्मास्‍त्र को पाना जरूरी हो गया है। भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन गया है जिसने खुद की हाइपरसोनिक टेक्‍नोलॉजी विकसित कर ली और इसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर लिया है। डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने ओडिशा के बालासोर में हाइपरसोनिक टेक्‍नॉलजी डिमॉन्‍स्‍ट्रेटर वीइकल (HSTDV) टेस्‍ट को अंजाम दिया। यह हवा में आवाज की गति से छह गुना ज्‍यादा स्पीड से दूरी तय करता है। यानी दुश्‍मन देश के एयर डिफेंस सिस्‍टम को इसकी भनक तक नहीं लगेगी।

सीधे शब्‍दों में कहें तो भारत के पास अब बिना विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलप करने की क्षमता हो गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, डीआरडीओ अगले पांच साल में स्‍क्रैमजेट इंजन के साथ हाइपरसोनिक मिसाइल तैयार कर सकता है। इसकी रफ्तार दो किलोमीटर प्रति सेकेंड से ज्‍यादा होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे अंतरिक्ष में सैटलाइट्स भी कम लागत पर लॉन्‍च किया जा सकते हैं। HSTDV के सफल परीक्षण से भारत को अगली जेनरेशन की हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-II तैयार करने में मदद मिलेगी। फिलहाल उसे DRDO और रूस की एजेंसी मिलकर डेवलप कर रहे हैं।