मुजफ्फरनगर| मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड के बाद आंदोलनकारियों से हथियारों की फर्जी बरामदगी के मामले में कोर्ट में पेश हुए तत्कालीन एसएचओ सहित तीन पुलिसकर्मियों से जिरह हुई। सीबीआइ ने आंदोलनकारियों से हथियारों की बरामदगी को फर्जी मानते हुए पुलिसकर्मियों के विरुद्ध ही कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। सीआरपीसी 313 के तहत बयान दर्ज कर कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई की तिथि 21 सितंबर तय की।
करीब 30 साल पहले अलग राज्य गठन की मांग के लिए उत्तराखंड से हजारों आंदोलनकारियों ने कार और बसों से दिल्ली के लिए कूच किया था। जिन्हें थाना छपार क्षेत्र के रामपुर तिराहा पर बैरिकेडिंग लगाकर रोक दिया गया था। एक और दो अक्टूबर 1994 की रात को आंदोलन उग्र हो गया था। आरोप था कि पुलिस फायरिंग में 7 आंदोलनकारियों की मौत हुई। जबकि कई आंदोलनकारी महिलाओं से रेप की बात भी सामने आई थी। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने मामले की विवेचना कर कोर्ट में अलग-अलग चार्जशीट दाखिल की थी।
तत्कालीन एसएचओ छपार ने 1500 अज्ञात आंदोलनकारियों पर फायरिंग और बलवा आदि करने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराते उनमें से कुछ से अवैध हथियारों की बरामदगी दर्शाई थी। जिनमें 5 पिस्टल और छह तमंचे तथा कारतूस शामिल थे। सीबीआई ने मामले की विवेचना कर बरामदगी फर्जी दर्शाते हुए थाना छपार के तत्कालीन थानाध्यक्ष ब्रजकिशोर और कांस्टेबल उमेश कुमार तथा अनिल कुमार के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की थी।
सीबीआई के काउंसलर धारा सिंह मीणा ने बताया कि घटना के मुकदमे की सुनवाई सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज मयंक जायसवाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार को तत्कालीन थानाध्यक्ष ब्रजकिशोर, रिटायर सब इंस्पेक्टर अनिल कुमार और हेड कांस्टेबल उमेश कुमार कोर्ट में पेश हुए। सीआरपीसी 313 के तहत आरोपितों के बयान दर्ज किए गए।
उन्होंने बताया कि संबंधित मामले में सीबीआई जांच में सामने आया था कि पुलिस पर फायरिंग का आरोप झूठा साबित करने के लिए आंदोलनकारियों से ही हथियार बरामद कर उन पर फायरिंग का आरोप लगाया गया था। सीबीआई जांच में यह सब फर्जी पाया गया था।