भारत में इसी सप्ताह 5 अक्टूबर को क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 का पहला मैच खेला जाएगा. भारत चौथी बार वर्ल्ड कप की मेजबानी कर रहा है. पहली बार भारत ने वर्ल्ड कप 1987 की मेजबानी संयुक्त तौर पर की थी. बीसीसीआई को तब वर्ल्ड कप की मेजबानी तश्तरी में सजाकर नहीं मिली थी. इसके लिए बीसीसीआई के तब के प्रेसिडेंट एनकेपी साल्वे को बहुत पापड़ बेलने पड़े थे. दरअसल, क्रिकेट वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर निकालने की शुरुआत 1983 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले से ही हो गई थी. बता दें कि पहले ये तय था कि क्रिकेट वर्ल्ड कप हर बार सिर्फ और सिर्फ इंग्लैंड में ही आयोजित किया जाएगा.
सबसे पहले जानते हैं कि वर्ल्ड कप 1983 के फाइनल में ऐसा क्या हुआ, जो साल्वे को अंदर तक चुभ गया. दरअसल, वर्ल्ड कप 1983 के फाइनल मुकाबले में साल्वे को इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड की ओर से निमंत्रण मिला तो उन्होंने बीसीसीआई के कुछ दूसरे अधिकारियों के लिए भी अतिरिक्त टिकटों की मांग की. इंग्लैंड के अधिकारियों ने उनकी इस मांग को बिना विचार किए ही ठुकरा दिया. बस यही बात साल्वे को इतनी बुरी तरह चुभ गई कि उन्होंने वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से छीनकर एशिया में कराने की ठान ली. सबसे बड़ी बात ये हुई कि वर्ल्ड कप 1987 इंग्लैंड से बाहर कराने के लिए दो दुश्मन देश भारत और पाकिस्तान ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया.
कपिल देव के नेतृत्व में टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप 1983 अपने नाम किया. देश में हर कोई खुश था और जश्न मना रहा था. लेकिन, साल्वे इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड के अपमान को भूल नहीं पाए. वर्ल्ड कप जीतने के साल्वे और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के तब के अध्यक्ष एयर मार्शल नूर खान लंच कर रहे थे. इसी दौरान साल्वे ने खान से कहा कि काश भारत में भी वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट हो पाते. इस पर खान ने सवाल किया कि हम वर्ल्ड कप अपने देश में क्यों नहीं खेल सकते? साल्वे ने लोहा गर्म देखकर तुरंत चोट की और कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान मिलकर अगले वर्ल्ड कप आयोजन करें तो कैसे रहेगा?
वर्ल्ड कप तब तक कभी भी इंग्लैंड के बाहर नहीं हुआ था. दरअसल, आईसीसी ने इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को वीटो पावर दी हुई थी. इस वजह से इंग्लैंड के बाहर वर्ल्ड कप आयोजन कराना करीब-करीब नामुमकिन था. लेकिन, साल्वे थे कि हार मानने को तैयार ही नहीं थे. उनकी पहल पर वर्ल्ड कप आयोजन के लिए भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड की एक संयुक्त समिति बनाई गई. दोनों देशों की सहमति के साथ साल्वे को समिति का अध्यक्ष बनाया गया. अब साल्वे के सामने सबसे बड़ी चुनौती आईसीसी को अपने पक्ष में करना थी. उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया और एक शानदार तरीका निकाला.
आईसीसी के सदस्यों के तौर पर उस समय 28 देश शामिल थे. इनमें से केवल 7 देश टेस्ट क्रिकेट खेलते थे. बाकी 21 देशों को टेस्ट टीम का दर्जा नहीं दिया गया था. साल्वे ने इंग्लैंड को पछाड़ने के लिए बड़ा दांव खेला और पैसे की बोली में बाजी जीत ली. भारत ने टेस्ट खेलने और टेस्ट ना खेलने वाले देशों को इंग्लैंड से ज्यादा गारंटी मनी देने का प्रस्ताव रखा. भारत ने टेस्ट खेलने वाले देशों को इंग्लैंड से करीब चार गुना, तो टेस्ट नहीं खेलने वाले देशों को पांच गुना ज्यादा भुगतान करने का वादा कर दिया. बीसीसीआई के प्रस्ताव को सुनकर आईसीसी भी हैरत में पड़ गई थी. बात यहीं खत्म नहीं हुई. अब बारी वोटिंग की थी. यहां भी भारत-पाकिस्तान ने साथ मिलकर वर्ल्ड कप 1987 आयोजन की वोटिंग में 12 के मुकाबले 16 वोट से जीत दर्ज की.
अब सवाल ये उठता है कि भारत ने वोटिंग में जीत दर्ज कैसे की, जबकि उस समय क्रिकेट में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज का दबदबा था. दरअसल, साल्वे ने सबसे पहले ये साफ तौर पर समझ लिया था कि अगर वर्ल्ड कप का आयोजन भारत में कराना है तो एशियाई देशों का साथ बेहद जरूरी है. भारत और पाकिस्तान के संयुक्त प्रयास से एशिया का तीसरा टेस्ट देश श्रीलंका भी इस मुहिम में साथ देने को तैयार हो गया. तब श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड चीफ गामिनी दसनायके थे. साथ के एवज में उनकी शर्त थी कि श्रीलंका आयोजन में कोई खर्चा नहीं करेगा. वोटों का समीकरण कुछ ऐसा था कि आईसीसी में कुल 37 वोट थे. इनमें 8 टेस्ट देशों के दो-दो और 21 एसोसिएट्स सदस्य देशों का एक-एक वोट था.
आईसीसी में वोट जुटाने की एकता के लिए पहले एशियन क्रिकेट काउंसिल बनी. इसके बाद एशिया कप शुरू हुआ. लाहौर और दिल्ली 1983 में हुई जिन बैठकों में एशिया कप पर चर्चा कर रहे थे, उन्हीं मीटिंग्स में वर्ल्ड कप के लिए भी तैयारी हो रही थी. लाहौर मीटिंग के बाद भारत ने वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर निकालने के लिए एक बुनियादी योजना बना ली थी. इसकी खबर लीक होते ही लंदन में हंगामा शुरू हो गया. भारत पर क्रिकेट को बांटने का आरोप लगाया गया. स्कीम में गलतियां निकाली गईं और चर्चा शुरू होते ही नामंजूर भी कर दी गई. इंग्लैंड का कहना था कि भारतीय उपमहाद्वीप में दिन लंबा नहीं होने के कारण 60 ओवर के मैच नहीं हो पाएंगे. एशियाई देशों ने दलील दी कि वर्ल्ड कप में मैच 60 ओवर के बजाय 50 ओवर के हो सकते हैं.
वर्ल्ड कप में 50 ओवर के मैच पर सहमति बनने के बाद भी इंग्लैंड का विरोध जारी रहा. यहां से बीसीसीआई ने राजनीति और कूटनीति का खेल शुरू किया. सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया को ये वायदा करके तोड़ा गया कि आप अभी साथ दो तो 1992 का वर्ल्ड कप आपको दिलाने में एशियाई देश साथ देंगे. इस पर ऑस्ट्रेलिया नर्म पड़ गया, लेकिन उसकी शर्त थी कि अगर वोटिंग हुई तो इंग्लैंड के खिलाफ वोट नहीं देंगे. इसके बाद बीसीसीआई ने एसोसिएट सदस्य देशों के एक-एक वोट की कीमत को समझा और उन्हें ज्यादा गारंटी मनी देने का वादा किया. दरअसल, तब इंग्लैंड सदस्य देशों को मैच खेलने आने के लिए गारंटी मनी में सिर्फ 3000 से 4000 पाउंड ही देता था. भारत ने वायदा किया वर्ल्ड कप के मुनाफे में हर सदस्य देश को 20,000 पाउंड दिए जाएंगे. वहीं, हर टेस्ट देश को गारंटी मनी के तौर पर 75,000 पाउंड का वादा किया गया. फिर वोटिंग हुई तो वर्ल्ड कप 1987 की मेजबानी भारत और पाकिस्तान को मिल गई.
वर्ल्ड कप 1987 को इंग्लैंड से बाहर निकालकर भारत-पाक में संयुक्त तौर पर कराने में दोनों देशों की सरकारों ने भी मदद की. वर्ल्ड कप 1987 का आयोजन ऐसा हुआ कि हर तरफ तारीफ हुई. दो देश में एक टूर्नामेंट कराने का अनोखा प्रयोग बिना दिक्कत पूरा हुआ. सबसे बड़ी बात ये हुई कि सिर्फ 1987 का वर्ल्ड कप ही इंग्लैंड से बाहर नहीं आया था, बल्कि आईसीसी में समीकरण भी बदल गए. इसी के बाद वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए रोटेशन का सिलसिला शुरू हो गया. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का वीटो अधिकार भी छिन गया. हालांकि, इस आयोजन के लिए श्रीलंका और पाकिस्तान ने पैसों के इंतजाम में मदद से पहले ही इनकार कर दिया. लिहाजा, बीसीसीआई को गारंटी मनी समेत आयोजन में खर्च होने वाली भारी-भरकम रकम का इंतजाम करना भारी पड़ गया था. इसमें रिलायंस ग्रुप ने बीसीसीआई का पूरा साथ दिया और पैसे का इंतजाम करने की बड़ी जिम्मेदारी अपने सिर लेकर आयोजन को सफल बनाया.
वर्ल्ड कप 1987 के दो देशों में सफल आयोजन के 1996 का क्रिकेट वर्ल्ड कप तीन देशों में आयोजित किया गया. वर्ल्ड कप 1996 की मेजबानी भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका को संयुक्त तौर पर मिली. इसके अलावा इस वर्ल्ड कप में कई बड़े बदलाव आए और यहीं से बीसीसीआई को कमाई करने का नया जरिया भी मिला. बता दें कि साल 1996 में ही भारत में केबल टीवी नेटवर्क की शुरुआत हुई थी. नतीजतन बीसीसीआई को वर्ल्ड कप मैचों के केबल टीवी राइट्स बेचने से तगड़ी कमाई हुई. इससे पहले तक बीसीसीआई को मैचों का लाइव टेलीकास्ट कराने के लिए दूरदर्शन को भुगतान करना पड़ता था. वर्ल्ड कप 1996 के क्वार्टर फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को हराया, लेकिन सेमीफाइनल मैच में श्रीलंका से हार गई.