मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान मस्जिद के इमाम के घर डकैती डालने के मामले में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में छह आरोपियों को बरी कर दिया। दंगों के दौरान 510 मुकदमे दर्ज कराए गए थे, जिनमें से अब तक तीन मामलों में ही सजा का ऐलान हुआ है।

मुजफ्फरनगर में 7 सितंबर 2013 को सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था। अभियोजन के अनुसार, थाना क्षेत्र के गांव फुगाना में 8 सितंबर को गांव की मस्जिद के इमाम के मकान में डकैती की घटना के बाद आगजनी के आरोप में आठ आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया। 8 सितंबर को गांव फुगाना के मस्जिद के इमाम बदरुज्जमां ने मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उनका घर गांव की मस्जिद में ही था।

आरोप यह था कि आठ सितंबर 2013 को जब वह परिवार के साथ घर पर मौजूद थे तो गांव के जितेन्द्र, सुनील कुमार, राजकुमार, सुनील पुत्र साधु, वीरेन्द्र, हरपाल और सूरजवीर और मोनू निवासीगण फुगाना सहित सैंकड़ों अज्ञात लोगों ने उनके घर पर हमला बोल दिया था। वे लोग सांप्रदायिक नारे लगा रहे थे। इस दौरान आरोपितों ने उनके घर पर हमलाकर लाखों रुपये का सामान लूट लिया था।

दर्ज कराए गए केस में कहा गया कि लूट के बाद आरोपितों ने घर में आग लगा दी थी। किसी तरह वह अपने परिवार के साथ जान बचाकर वहां से भाग निकले थे। इसके बाद उन्होंने लोई स्थित दंगा पीड़ितों के शिविर में शरण ली थी। बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल चौधरी ने घटना के मुकदमे की जांच कर एसआइटी ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी।

वकील ने कोर्ट को बताया कि शासन के अनुमति मिलने के बाद सांप्रदायिक विद्वेष की धारा में भी कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी। मुकदमे की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-7 शक्ति सिंह की कोर्ट ने दोनों पक्ष की बहस सुनने के बाद साक्ष्य के अभाव में छह आरोपितों को बरी कर दिया। मुकदमे में आरोपित राजकुमार पुत्र ओमप्रकाश और सूरजवीर पुत्र बलधार की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है।

मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान 510 मुकदमे दर्ज किए गए थे। इनमें अब तक केवल तीन में ही सजा हो पाई है। अधिकतर मुकदमों में आरोपित साक्ष्य के अभाव में बरी हो चुके हैं। एसआइटी ने 510 मुकदमों में से 165 में साक्ष्य न मिलने पर एफआर लगा दी थी।

वहीं, 170 एफआईआर एक्सपंज कर दी गई थी। इनमें 100 से अधिक मुकदमों में फैसला आ चुका है। इनमें एक हजार से अधिक आरोपित बरी हो चुके हैं। अब तक केवल तीन मुकदमों में ही दोषियों को सजा हो पाई है।