मुजफ्फरनगर/शामली। कभी मुजफ्फरनगर जिले का हिस्सा रहे ओर अब शामली जिले के गांव बुटराडा में साल 2003 में हुई छह लोगों की सामूहिक हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बडा फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2003 में मुजफ्फरनगर जिले के बाबरी इलाके में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण अंधाधुंध गोलीबारी में छह लोगों की हत्या से जुड़े मामले में दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। शीर्ष अदालत ने शर्त लगाई कि उसे 20 साल तक रिहा नहीं किया जाएगा।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हाल के एक फैसले में सुदेश पाल की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया।
हालांकि, अदालत ने दोषी मदन की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया और उसे दिए गए मृत्युदंड को 20 साल की निश्चित अवधि के कारावास में बदल दिया। इसमें कारावास की वह अवधि भी शामिल होगी, जिसमें कोई छूट नहीं दी गई थी।
पीठ ने कहा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आरोपी को मामले में मौत की सजा देना और दूसरे की सजा को आजीवन कारावास में बदलना उचित नहीं था जबकि दोनों की भूमिका समान थी। मदन के मामले में हाईकोर्ट ने नोट किया कि उसे एक अन्य मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। पीठ ने कहा, यदि हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा जाता है तो इससे विषम स्थिति पैदा हो जाएगी।
तथ्यों पर गौर करने के बाद पीठ ने कहा, मौजूदा मामला ऐसा नहीं है जिसमें यह माना जा सके कि मौत की सजा देना ही एकमात्र विकल्प है। हालांकि, अपीलकर्ताओं और अन्य आरोपियों का कृत्य निश्चित रूप से समाज के विवेक को झकझोर देना वाला है और मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में आता है।
अदालत ने नोट किया कि अपीलकर्ताओं और अन्य आरोपी व्यक्तियों की क्रूर गोलीबारी के कारण छह मौतें हुईं। पीठ ने कहा, पूरा गांव और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग इस तरह के जघन्य और वीभत्स कृत्य से स्तब्ध रह गए होंगे। इतना ही नहीं मुकदमे के लंबित रहने के दौरान एक चश्मदीद गवाह की भी हत्या कर दी गई थी।
अपीलकर्ताओं और अन्य आरोपियों का आतंक का यह आलम था कि जिन गवाहों को गंभीर चोटें आई थीं, उन्होंने भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया। मदन की उम्र फिलहाल 64 साल है और वह 18 साल 3 महीने से जेल में है। अदालत ने पाया कि इस पूरी अवधि के दौरान उसने जेल में कोई अपराध नहीं किया था।