नई दिल्ली। चुनाव छोटा हो या बडा. गांव के चुनाव में प्रत्‍याशी से लेकर सांसद, विधायक तक के चुनाव में उन्‍हीं की हनक चलती थी. इन बाहुबलियों की मर्जी के बिना गांवों में प्रतिनिधि का पर्चा तक लोग भरने से घबराते थे, लेकिन समय बदला तो इनमें से तमाम बाहुबलियों की जमीन घिसक गई. कुछ इस दुनिया में ही नहीं रहे. इस लोकसभा चुनाव में शायद ही पूर्वांचल का कोई बाहुबली चुनाव मैदान में दिखेगा. आइए डालते हैं एक नजर..

1980 के दशक में गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की हनक चलती थी. हरिशंकर तिवारी, बाबा के नाम से पॉपुलर थे. छात्र राजनीति से निकले हरिशंकर तिवारी की गिनती बाहुबलियों में होती थी. ठाकुर नेता वीरेन्‍द्र प्रताप शाही से उनकी अदावत के किस्‍से आज भी मशहूर हैं. दोनों के बीच आए दिन खूनी जंग होती रहती थी. 1985 में तिवारी ने राजनीति में एंट्री ले ली और जेल में रहते हुए चिल्‍लूपार से विधायक चुन लिए गए. वह लगातार 22 साल तक यहां से चुनाव जीते. सरकार किसी की हो, वह मंत्री भी बन जाते थे. 16 मई 2023 को उनका निधन हो गया.

पूर्वांचल में मुख्‍तार अंसारी का दबदबा किसी से छिपा नहीं था. पिछले 4 दशक से मुख्‍तार का पूर्वांचल में बोलबाला था. मुख्तार के खिलाफ लगभग 65 मामले दर्ज थे. अभी हाल ही में मुख्‍तर का हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया. वह मऊ विधानसभा सीट से 5 बार विधायक भी रहा. उसने आखिरी चुनाव वर्ष 2017 में लड़ा और वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वह मैदान में नहीं उतरा. मुख्‍तार अंसारी पर भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्‍या के भी आरोप थे.

धनंजय सिंह के नाम का सिक्‍का भी पूर्वांचल में खूब चलता था. धनंजय का आपराधिक रिकॉर्ड 3 दशक से अधिक पुराना है. उनके खिलाफ 1991 से 2023 के बीच कुल 43 मामले दर्ज है. ये मामले लखनऊ और जौनपुर ही नहीं, दिल्‍ली तक में दर्ज है, हालांकि 22 मामलों में धनंजय सिंह को दोषमुक्‍त कर दिया गया है. हाल ही में धनंजय सिंह को एक इंजीनियर के अपहरण के मामले में दोषी ठहराते हुए उन्‍हें 7 साल की सजा सुनाई गई. जिसके बाद अब धनंजय सिंह भविष्‍य में कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. उनके जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा थी. बता दें कि अपने रसूख को बचाने के लिए धनंजय सिंह ने वर्ष 2002 में राजनीति में एंट्री ली और रारी से विधायक बन गए. 2009 में लोकसभा का चुनाव जीता था.

तब का इलाहाबाद और अब के प्रयागराज समेत पूर्वांचल के कई जिलों में अतीक अहमद की दहशत थी. जमीनें कब्‍जाने से लेकर कई तरह के गैरकानूनी कामों का दूसरा नाम बन चुका था अतीक. एक समय था जब पूर्वांचल की दर्जन भर सीटों पर अतीक अहमद का दबदबा माना जाता था. यह कहा जाता था कि ये सीटें अतीक के प्रभाव वाली हैं और तो और वह खुद इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से पांच बार विधायक और एक बार सांसद भी रहा. अब अतीक अहमद की हत्‍या हो चुकी है. उसका बेटा भी एनकाउंटर में ढेर हो चुका है. पत्‍नी फरार है. ऐसे में उसकी राजनीतिक विरासत संभालने वाला कोई नहीं बचा.

बाहुबली विजय मिश्रा पर लगभग 83 मुकदमें दर्ज हैं. किसी समय में भदोही से लेकर प्रयागराज तक विजय मिश्रा का बोलबाला था. अपराधिक दुनिया के बाद विजय मिश्रा ने राजनीति में घुसपैठ की और भदोही की ज्ञानपुर सीट से लगातार चार बार विधायक रहे. योगी सरकार आने के बाद कार्रवाई शुरू हुई. 2022 के विधासभा चुनाव में वह तीसरे नंबर रहे. अभी हाल ही में 13 साल पुराने एक आर्म्स एक्ट के केस में तीस साल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद वह 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते.