बागपत। रालोद के डाॅ. राजकुमार सांगवान ने जीतकर दस साल बाद चौधरी परिवार को उसकी विरासत कही जाने वाली बागपत सीट वापस दिलाई है। इस सीट को वर्ष 2014 में भाजपा के डाॅ. सत्यपाल सिंह ने अजित सिंह को हराकर चौधरी परिवार से छीना था। मगर चौधरी परिवार को वर्ष 2019 में विरासत छिन जाने का जख्म जयंत की हार से गहरा हो गया था। अब यहां से जीत से चौधरी जयंत को काफी राहत मिली है।
बागपत लोकसभा सीट को चौधरी परिवार के लिए इसलिए भी अहम माना जाता है, क्योंकि चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1977 में पहला लोकसभा चुनाव यहां से जीता था। वह यहां से लगातार तीन बार जीत दर्ज करके सांसद बने और यहां जीतकर ही देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। उनके बाद चौधरी अजित सिंह ने वर्ष 1989 में विरासत को संभाला और वह लगातार जीत दर्ज करते रहे। मगर उनको वर्ष 1998 में एक बार हार का सामना करना पड़ा और एक साल बाद ही लोगों ने उनको दोबारा से संसद में पहुंचा तो वह फिर लगातार सांसद रहे। मगर वर्ष 2014 में भाजपा के डाॅ. सत्यपाल सिंह ने चौधरी अजित सिंह को हराकर चौधरी परिवार से यह सीट छीन ली।
जिसके बाद दस साल से विरासत की इस सीट को वापस लेने के लिए चौधरी परिवार को जूझना पड़ रहा था। इस बार ऐसा हुआ कि 47 साल से लगातार चुनाव मैदान में उतर रहा चौधरी परिवार पीछे हट गया और अपने पुराने कार्यकर्ता को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला लिया।
रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने काफी उम्मीदों के साथ डाॅ. राजकुमार सांगवान को चुनाव मैदान में उतारा था। उनकी उम्मीदों पर सांगवान भी पूरी तरह से खरा उतरे और एक बड़े अंतर से जीत दर्ज करके चौधरी परिवार का दस साल का सूखा खत्म करके उनको विरासत की सीट दोबारा वापस सौंप दी। इसलिए ही इस जीत को सांगवान की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
रालोद ने इससे पहले वर्ष 2009 में भाजपा के साथ मिलकर ही लोकसभा चुनाव लड़ा था। वह चुनाव भी काफी टक्कर वाला रहा था और उसमें बसपा के मुकेश शर्मा ने चौधरी अजित सिंह को टक्कर दी थी। हालांकि उस चुनाव को चौधरी अजित सिंह करीब 50 हजार वोटों से जीत गए थे। उस चुनाव में अजित सिंह खुद जीते थे और उनकी पार्टी को बिजनौर, अमरोहा, हाथरस व मथुरा की सीट भी मिली थी। अब पंद्रह साल बाद भी भाजपा के साथ मिलकर रालोद के दो सांसद जीते हैं।