मुज़फ्फरनगर।   पश्चिमी यूपी के नतीजों ने भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। यहां भाजपा को राष्ट्रीय लोकदल का साथ रास नहीं आया। भगवा खेमे को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि रालोद को जरूर संजीवनी मिल गई। वह अपने हिस्से की बिजनौर और बागपत सीटें जीतने में कामयाब रही।

रालोद ने जो दो सीटें जीतीं उसमें एक पहले से भाजपा के पास थी। सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल की सभी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मेरठ मंडल में भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में काफी हद तक कामयाब रही। नगीना सीट पर आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की जीत ने सभी को चौंका दिया है।

चुनाव से ठीक पहले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देना और जयंत चौधरी को अपने साथ लेना भी भाजपा के काम न आया। वहीं मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान का बयान और संगीत सोम की नाराजगी भी भारी पड़ गई। राजपूत समाज के लोगों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई पंचायतें की और भाजपा को हराने की कसमें खाईं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राजपूतों को मनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन निष्फल रही।

राजपूतों की नाराजगी ने न सिर्फ मुजफ्फरनगर सीट पर अपना असर दिखाया बल्कि सहारनपुर और कैराना में भी राजपूतों का काफी वोट कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद और सपा की इकरा हसन के हक में गया। नतीजा यह हुआ कि इन तीनों सीटों पर भाजपा हार गई। खास बात यह रही कि मुजफ्फरनगर और कैराना सीट भाजपा ने 2014 में तब जीती थी, जब रालोद-सपा गठबंधन के साथ थी।

भाजपा और रालोद साथ तो आ गए लेकिन जमीन पर इन पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच वह अंडरस्टैंडिंग नहीं दिखी जो गठबंधन में होनी चाहिए थी। कई स्थानों पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच मारपीट की घटना भी सामने आई। ऐसे में माना यह भी जा रहा है कि कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य न बिठा पाने का खामियाजा भी भाजपा को ही भुगतना पड़ा। चर्चा यह भी है कि रालोद के कोटे की बागपत और बिजनौर सीटों पर जाटों ने भावनात्मक रूप से सहयोग किया, जबकि अन्य सीटों पर तटस्थभाव रखा।

पहले चरण में जिन आठ सीटों पर चुनाव हुआ था, उसमें से छह सीट भाजपा गठबंधन हार गई। बिजनौर रालोद के खाते में गई और पीलीभीत सीट को भाजपा ने जीता। बाकी सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मुरादाबाद, रामपुर सीट पर सपा-कांग्रेस ने कब्जा किया। नगीना सीट पर आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद ने जीत दर्ज की। 2019 के चुनाव में मुजफ्फरनगर, कैराना और पीलीभीत पर भाजपा ने कब्जा किया था।

सीट कोई भी रही हो। मुस्लिम मतदाताओं ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकतरफा मतदान किया। यही वजह रही कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद वोट सपा-कांग्रेस के पक्ष में पड़ा। हालांकि नगीना सीट पर रणनीतिक रूप से मुस्लिमों ने आसपा के चंद्रशेखर को एकतरफा मतदान किया। पश्चिमी यूपी की कुछ सीटें ऐसी भी रहीं जहां दलितों ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया। मसलन मेरठ में अगर सुनीता वर्मा ने भाजपा के अरुण गोविल को कड़ी टक्कर दी तो यह दलित वोटों के बदौलत ही मुमकिन हो सका।