मुज़फ्फरनगर : मुजफ्फरनगर में 27 अगस्त 2013 को हुए कवाल कांड के बाद सात सितंबर को दूसरी पंचायत के बाद दंगे की चिंगारी भड़की थी। अनेक लोगों की जान गईं, तो कई बेघर हो गए। आज लोग दंगे के उस दर्द को भूलकर रोजगार की उम्मीद करते हैं।
नंगला मंदौड़ की पंचायत खत्म होते-होते दंगे की चिंगारी भड़क उठी थी। लोगों की जान गई। घर और गांव छूट गए, लेकिन वक्त के मरहम से गहरा घाव भरने लगा है। सर्वसमाज के लोग कहते हैं कि दंगा गलतफहमी में हुई बड़ी भूल थी, जिसे सब भूल जाना चाहते हैं।
कवाल कांड के बाद जिले में पंचायतों का दौर शुरू हुआ। शहर के शहीद चौक पर 30 अगस्त को जुमे की नमाज के बाद लोग एकत्र हुए। 31 अगस्त को नंगला मंदौड़ इंटर कॉलेज के मैदान पर पंचायत बेनतीजा रही। सात सितंबर को दूसरी पंचायत में पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रमुख नेता और गणमान्य लोग शामिल थे। इसी पंचायत से वापस लौटते लोगों पर हमले के बाद दंगा भड़क गया था।
शाहपुर के गांव पलड़ा स्थित अहमदनगर कॉलोनी में रह रहे मास्टर जहूर अहमद का कहना है कि दंगे से समाज को भारी नुकसान हुआ है। गांव कुटबा, कुटबी और काकड़ा छोड़कर लोग दूसरी जगह चले गए। वक्त बदला और अब आपसी भाईचारा बढ़ा है। गांव छोड़कर गए लोगों का गांव में आना जाना शुरू हो गया है।
गांव पलडा में ही रह रहे कुटबा निवासी मोमीन ने बताया कि दंगे में उनकी चाची खातून की मौत हो गई थी। अपनी जन्मभूमि छोड़ने के बाद से बेरोजगार हैं। इसके अलावा पढ़े-लिखे युवा भी मजदूरी कर रहे हैं।
गांव पलड़ा में रह रहे गांव कुटबा निवासी युवा 26 वर्षीय इंतजार का कहना है कि जिस समय दंगा हुआ, उसकी उम्र करीब 15 वर्ष की थी। वह कक्षा 11 का छात्र था। दंगे से उसकी पढ़ाई प्रभावित हुई। गांव के युवा बेरोजगार हैं। वह मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। सरकार युवाओं के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध कराए ।
गांव काकड़ा निवासी उपेंद्र सिंह का कहना है कि नगला मंदोड़ की पंचायत से लौटते समय गांव पुरबालियान में हुए हमले में उनके चाचा महेंद्र सिंह की मौत हो गई थी। समाज में आपसी भाईचारा बना रहना चाहिए और सभी को मिल जुलकर रहना चाहिए।
मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान 534 मुकदमे दर्ज हुए थे, इनमें 79 मुकदमे सेशन कोर्ट में विचाराधीन हैं। डेढ़ सौ मुकदमों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई थी। पिछले 11 साल में सिर्फ दो मुकदमों में ही फैसला आया है। कवाल कांड के अलावा शामली के एक दुष्कर्म के मुकदमे में सजा सुनाई गई थी।
सांप्रदायिक दंगे के दौरान फुगाना गांव के करीब 500 परिवार गांव छोड़कर विस्थापितों की कॉलोनी में चले गए थे, जबकि शकूरा लुहार के परिवार को ग्रामीणों ने रोक लिया था। फुगाना गांव के दर्जनों ग्रामीण रात-दिन इस परिवार का पहरा देते थे। देर रात के समय पहरे के दौरान गांव के मास्टर जगपाल को अंधेरे में किसी ने गोली मार दी थी।
इस घटना के बाद ग्रामीणों के साथ पुलिस भी इस परिवार का पहरा देने लगी थी। शकूरा के दो बेटे मोहम्म्द व गुलशेर है। गुलशेर कैराना में दुकान करने लगा हैं। मोहम्मद अपने पिता के साथ गांव में अपना पुस्तैनी काम करता है। ग्रामीण पूर्व प्रधान थामसिंह व मुकेश मलिक ने बताया कि इस परिवार को बहुत मुश्किल से रोक गया था। जो परिवार गांव छोड़कर चले गए वे वापस नही लौटे।
खरड़ गांव के आकिल व पप्पू लुहार ने बताया कि गांव से मेहरबान, लाल्ला व इस्माइल का परिवार गांव छोड़कर चला गया था। वे नहीं लौटे है। गांव में उन्हें हिंदू परिवारों का भरपूर प्यार मिलता है। शादी-विवाह में सबके यहां आना जाना है। गांव फुगाना निवासी दंगा पीड़ित यामीन का कहना है कि वह गांव में मजदूरी का कार्य करता था। यहां भी चिनाई मजदूरी का कार्य करता है। अपने गांव में मजदूरी व सम्मान की कोई कमी नहीं थी। गांव छूटने के बाद सम्मान भी गया व काम भी।
बुढ़ाना के परासौली गांव के पास विस्थापितों की कालोनी फलाह-ए-आम के रहने वाले गांव हसनपुर निवासी इमरान का कहना है कि सांप्रदायिक दंगे के बाद लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए शरणार्थी शिविरों में शरण ली थी, तब से लेकर आज तक परिवार मूलभूत सुविधाओं के लिए भटक रहा है। मुस्तकीम, मोहसीन, मंजूरा, सद्दाम, इकबाल व हासिम का कहना है कि उन्हें अपने गांव में जाते ही रोजगार मिल जाता है। गांव की याद हमेशा सताती रहेगी।