मुजफ्फरनगर। मीरापुर उपचुनाव में मुस्लिमों का रुख नतीजे तय करेगा। मतदान प्रतिशत से लेकर मुस्लिमों के साथ प्लस के समीकरण पर चुनाव टिका है। जाट-मुस्लिम और दलित-मुस्लिम के फार्मूले का असर यहां चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर चुका है।
मीरापुर क्षेत्र के कवाल गांव में ही करीब 11 साल पहले भड़की दंगे की चिंगारी से मुजफ्फरनगर जल उठा था। दंगे के बाद से नए सियासी समीकरण बने। साल 2022 में सपा-रालोद गठबंधन ने भाजपा को चित कर दिया था।
लेकिन इस बार रालोद का गठबंधन भाजपा के साथ है। नए गठबंधन के साथ मिलकर उपचुनाव में रालोद की साख भी दांव पर लगी है। असली में इसी सीट वाली बिजनौर लोकसभा से रालोद के चंदन चौहान सांसद है। उनके सांसद बन जाने से ही मीरापुर सीट खाली हुई है। ऐसे में रालोद के सामने खुद को साबित करने का इम्तिहान है।
करीब 1.20 लाख मुस्लिम मतों की चाल पर सबकी निगाह है। सपा से सुम्बुल राना, बसपा से शाह नजर और आसपा से जाहिद हुसैन चुनाव मैदान में हैं। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि मुस्लिमों का रुख क्या रहता है। मुस्लिम दूसरी किस बिरादरी के साथ मिलकर समीकरण बनाकर नतीजों पर असर डालते हैं। सपा का पीडीए फार्मूला यहां कितना कारगर रहता है।