मुजफ्फरनगर। दिव्यांगों ने अपने हौसलो से समाज के लिए प्रेरणा की नई कहानी लिखी है। गांव की गलियों से लेकर ओलंपिक तक में दिव्यांगों का दमखम देखने को मिला है। भोपा के सगे भाई जीवटता की मिसाल बन गए हैं। मेहनत के दम पर आज वह किसी के मोहताज नहीं रहे। कुदरत ने पैर छीने, लेकिन दिव्यांगों ने कुछ कर दिखाने के जज्बे के साथ नई मिसाल पेश कर दी। सिर्फ खेती में ही नहीं, बल्कि मजदूरी, व्यापार और खेल के आसमान पर ऐसे सितारे चमक रहे हैं।
शाहपुर। क्षेत्र के गांव गोयला की पैरा तीरंदाजी खिलाड़ी ज्योति बालियान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेरी है। राष्ट्रीय स्तर पर 18 स्वर्ण पदक जीतने के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीन पदक हासिल किए है। वल्र्ड चैंपियनशिप, एशियन चैंपियनशिप और पैरालंपिक में ज्योति की चमक दुनिया ने देखी है। रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार हासिल कर चुकी है।
चरथावल। दिव्यांगता को मात देने का मूलमंत्र है मेहनत। पांच साल की उम्र में मशीन में एक हाथ गंवाने वाले अलीपुरा गांव के राजबल सिंह के लक्ष्य और कठिन मेहनत के सामने असफलता बौनी नजर आती है। पसीना बहाकर वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर जैवलिंग थ्रो, डिस्कस और शार्टपुट थ्रो में गोल्ड मेडल जीत चुके है। वर्ष 2024 में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए वह रेस्टोरेंट के पेशे के साथ प्रैक्टिस में जुटे है। मेरठ निवासी पत्नी बुलबुल भी पैर से दिव्यांग होने के बावजूद नेशनल खेल चुकी है। किसान ब्रजपाल सिंह के बेटे का पांच साल की उम्र में घास काटने की मशीन में आकर हाथ कट गया। बेटे के दिव्यांग होने के बावजूद पिता ने हार नहीं मानी। राजबल ने एमए तक पढ़ाई की और खेल में खुद का तराशा। वह डिस्कस थ्रो, जैवलिंग और गोला फेंक में विदेशों में धाक जमाई। फिलीपींस, मलेशिया और जापान में गोल्ड मेडल जीता। कहते है दिव्यांगता के लिए खेल बड़ी प्रेरणा है।
भोपा। भोपा थाने की सीमा से सटे गांव बसेड़ा निवासी दिव्यांग किसान अमोद कुमार (38 ) एक वर्ष की उम्र में ही पोलियो से ग्रस्त हो गए थे, जिसके कारण उनके दोनों पैर निष्क्रिय हो गए। इसके बाद भी प्रमोद कुमार खेती-बाड़ी के कार्य में किसी भी किसान से कमतर नहीं है। अमोद कुमार के भाई प्रवीण कुमार व चचेरे भाई विकास चेयरमैन बताते हैं कि अमोद कुमार आज भी कड़ी मेहनत के दम पर अपने सभी कार्य खुद करते हैं। खेती का काम करने में वह माहिर है। अमोद कुमार एक खेत से दूसरे खेत तक जाने के लिए भैंसे की पीठ पर सवार होकर पहुंचते हैं।
कुदरत ने दिव्यांग बनाए, हौसले से बन गए मिसाल
भोपा। कस्बा निवासी मंगता पाल के बेटे विकास व मोनू दिव्यांग होने के बाद भी घर से लेकर खेत तक अपने सारे कार्य खुद करते हैं। दोनों भाई भैसा-बोगी से भाड़े का कार्य करते हैं। दोनों ने मिलकर एक ई-रिक्शा भी किस्तों पर खरीदी, जिससे वह भोपा से आसपास क्षेत्र में चला कर गुजारा करते रहे। विकास ने कक्षा 10 वीं तक तो मोनू ने 12 वीं तक कक्षा पढाई की हैं। दोनों भाई बताते हैं कि वह जी जान से अपना मजदूरी कार्य करते हैं। इनकी दो सगी बहने रजनी वह मोनी भी दिव्यांग है। मोनी ने ग्रेजुएशन किया है और रजनी भी शिक्षित है। बहन घर पर सिलाई करती है।