किसान आंदोलन खत्म होने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी की इमेज को किसानों के बीच और बेहतर बनाने के साथ उन्हें किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द साबित करने की रणनीति पर तेजी से काम चल रहा है। केंद्र सरकार इसकी पूरी तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि जनवरी 2022 में सरकार कुछ ऐसा करने वाली है, जिससे किसानों को उससे कोई शिकायत न हो। तब तक किसान दिल्ली से सटे हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर से पूरी तरह चले जाएंगे। सभी टोल टैक्स खाली हो जाएंगे, लेकिन किसान संगठनों के बीच में भी राकेश टिकैत की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है। केंद्रीय सचिवालय के गलियारे में भी राकेश टिकैत की चुप्पी को लेकर तरह-तरह की चर्चा है। हालांकि भाकियू के नेता राजबीर सिंह जादौन का कहना है कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। इस तरह के कयास पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

जादौन कहते हैं कि भाकियू की तरफ से बातचीत में कभी राकेश टिकैत नहीं जाते। हमेशा से भाकियू के राष्ट्रीय महासचिव और हमारे नेता युद्धवीर सिंह ही जाते रहे हैं। युद्धवीर सिंह जाट महासभा के महासचिव भी हैं और चौधरी चरण सिंह, महेंद्र सिंह टिकैत के साथ भी काम कर चुके हैं। जबकि चर्चा है कि केंद्र सरकार की इच्छा के अनुरुप ही राकेश टिकैत शांत चल रहे हैं। टिकैत के चेहरे पर फिलहाल आंदोलन के दौर वाली या फिर जीत वाली कोई चमक नहीं दिखाई दे रही है। किसान नेता युद्धवीर सिंह भी किसानों के आंदोलन की बहुत बड़ी जीत बता रहे हैं, लेकिन वह इस समझौते को अभी 50 फीसदी ही बताते हैं।

गृह राज्यमंत्री टेनी की बर्खास्तगी की मांग का क्या हुआ?
किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए किसानों ने जिन मुद्दों को प्रमुख बताया था, उसमें एक मुद्दा गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग का भी था। इसके लिए प्रमुख किसान संगठनों ने भी काफी जोर दिया था। लेकिन केंद्र सरकार के रणनीतिकारों से वार्ता के दौरान किसान संगठनों को इस मांग को न उठाने के लिए मना लिया गया। किसान संगठनों से कहा गया कि किसानों की समस्या के समाधान और आंदोलन को समाप्त करने की शर्त में अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग नहीं उठनी चाहिए। किसान संगठनों की यह मांग और जिद दोनों ठीक नहीं है। किसान संगठनों से जुड़े एक नेता ने कहा कि हमने इस पर कोई विशेष आपत्ति नहीं की। क्योंकि लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले की जांच उच्चतम न्यायालय की निगरानी में हो रही है।

आखिर सरकार ने कैसे मनाया किसानों को?
सरकारी पक्ष की मानें तो 26 जनवरी को लाल किला और दिल्ली में हिंसा की स्थिति पैदा होने के बाद किसान संगठन आंदोलन को लेकर कुछ दबाव में आने लगे थे। लेकिन आंदोलन को उत्तर प्रदेश के एक नेता का संरक्षण मिलने के बाद इसका स्वरुप बदल गया। सरकार भी बैकफुट पर आ गई। दूसरा बड़ा झटका सरकार को लखीमपुर खीरी की घटना और उपचुनावों के नतीजों ने दिया। सूत्र का कहना है कि प्रधानमंत्री ने उच्चस्तर पर मंत्रणा के बाद किसान आंदोलन को लेकर रणनीति बनाई थी। इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की काफी अहम भूमिका रही। किसानों को मनाने के लिए हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के किसानों में गहरी पैठ रखने वाले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी भूमिका निभाई। राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं में नरेश टिकैत, राकेश टिकैत, युद्धवीर सिंह, सरदार वीएम सिंह, भानु गुट आदि में भी गहरी पैठ रखते हैं। भाकियू के युद्धवीर सिंह नरेश और राकेश के बीच में कड़ी का काम करते हैं और बातचीत में संवेदनशील रहते हैं। इसलिए युद्धवीर सिंह को इसके लिए चुना गया।

पंजाब और हरियाणा के किसानों को मनाया
किसानों को मनाने के लिए केंद्र सरकार के रणनीतिकारों ने पहले पंजाब से ही समस्या के समाधान के रास्ते को चुना। बताते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और उनकी अमित शाह से मुलाकात के बाद यह रास्ता आसान बनाने की कवायद शुरू हो गई। इसमें अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई। किसान नेता सतनाम सिंह सरीखों ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी की प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा के बाद से ही सरकार के पक्ष में और आंदोलन से उठने के लिए बयान देना शुरू कर दिया। हरियाणा के किसानों को साधने के दौरान केंद्र सरकार के सामने सबसे अहम मुद्दा करीब 45 हजार मुकदमों की वापसी का आया। इस दौरान केंद्रीय मंत्री और पंजाब के प्रभारी गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बताते हैं इसके समाधान का रास्ता खोजने के बाद केंद्र सरकार ने आंदोलन को समाप्त कराने की पटकथा लिखनी शुरू कर दी। इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कृषि मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल, प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अफसर अहम बताए जा रहे हैं।

सावधान हैं भाजपा और केंद्र के रणनीतिकार
राकेश टिकैत को लेकर भाजपा और केंद्र सरकार के रणनीतिकार काफी सावधान हैं। राजनीतिक मामले पर नजर रखने वाले सूत्र का कहना है कि राकेश टिकैत समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से अच्छा संबंध रखते हैं। इस आंदोलन में समाजवादी पार्टी की भूमिका से भी इनकार नहीं है। समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय लोकदल के साथ उत्तर प्रदेश में चुनावी तालमेल है। इसकी पूरी संभावना है कि राकेश टिकैत के कुछ करीबी नेता समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरें। राजनीति और चुनाव जैसी किसी संभावना के बारे में राकेश टिकैत भी चुनाव अधिसूचना जारी होने का इंतजार करने की बात कहते हैं। ऐसे में भाजपा और केंद्र सरकार के रणनीतिकारों ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। राकेश टिकैत को अलग रखकर युद्धवीर सिंह से बातचीत की पहल की है। हालांकि नरेश टिंकैत, राकेश टिकैत और युद्धवीर सिंह सभी आपस में करीबी हैं और इन सभी स्थितियों की भनक समय पर ही राकेश टिकैत को लग चुकी थी। बताते हैं आंदोलन के हर मोड़ पर काफी कुछ आपसी तालमेल के साथ आगे बढ़ा है।