मुजफ्फरनगर। भले ही मुजफ्फरनगर दंगे को लगभग नौ साल हो गए है, लेकिन विधानसभा चुनाव मैदान में खड़े प्रत्याशियों के समर्थक पुराने जख्म कुरेद रहे हैं। व्हाट्सएप और फेसबक पर भड़काऊ वीडियो और पोस्ट डाली जा रही है। पुलिस अब तक इन पोस्ट पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हुई है।

प्रत्याशियों के समर्थक मुजफ्फरनगर दंगे की कहानी अपने-अपने हिसाब से बयान कर रहे हैं। कोई तत्कालीन सरकार के मंत्रियों को कठघरे में खड़ा कर रहा है तो कोई डीएम-एसएसपी के तबादले पर सवाल उठा रहे है। पुराने फोटो और वीडियो भी खूब पोस्ट किए जा रहे हैं। दंगे में किसकी क्या भूमिका थी, यह भी मतदाताओं का याद दिलाया जा रहा है। व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक खातों पर पुलिस की निगरानी भी फेल साबित हो रही है।

सोशल मीडिया पर दंगे से पहले सोरम गांव में हुए झगड़े और उसमें नेताओं की भूमिका को भी याद दिलाया जा रहा है। इसके अलावा जौली नहर और थाने में खड़े ट्रैक्टर के फोटो भी शेयर किए जा रहे हैं।

समर्थक इन दिनों पुराने वीडियो वायरल कर रहे हैं। जिन्हें लेकर कई जगह तनाव का माहौल भी बन रहा है। प्रत्याशियों को भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह फर्जी विरोध के वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं।

मुजफ्फरनगर दंगे से पहले एक विदेशी वीडियो को कवाल गांव की बताकर वायरल कर दिया गया था। जिसके बाद दंगा भडक़ा था। वर्तमान में भी कई वीडियो को लेकर तनाव बन रहा है, लेकिन पुलिस चुप्पी साधे हुए है।