मुज़फ्फरनगर. उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में इस बार मुज़फ़्फरनगर जिले की मीरापुर सीट पर दिग्गज कांग्रेसी और प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री चौधरी नारायण सिंह के पोते चंदन सिंह चौहान चुनावी मैदान में अपनी पुश्तैनी साख बरकरार रखने के लिये संघर्षरत हैं। वह समाजवादी पार्टी (सपा) की अगुवाई वाले गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।

मीरापुर विधान सभा सीट की पहचान उत्तर प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री चौधरी नारायण सिंह के नाम से है। चौधरी नारायण सिंह ने 1974 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) के उम्मीदवार सईद मुर्तजा को 112 मतों के अंतर से पराजित कर चुनाव जीता था। आपातकाल के बाद 1977 में चौधरी नारायण सिंह जनता पार्टी के टिकट पर फिर इसी सीट से जीतकर विधान सभा में पहुंचे थे और मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास की सरकार में वह उप मुख्यमंत्री बने।
इसी सीट से 1996 में चौधरी नारायण सिंह के बेटे संजय चौहान ने सपा के टिकट पर विधायक बन कर मीरापुर सीट पर अपने परिवार की श्रंखला को आगे बढ़ाया। संजय चौहान 2012 में बिजनौर लोक सभा सीट से भाजपा-रालोद गठबंधन के टिकट पर लोक सभा सदस्य निर्वाचित हुए थे। मीरापुर सीट, परिसीमन से पहले मोरना सीट के नाम से जानी जाती थी। अब इस सीट पर चौधरी नारायण सिंह के पौत्र और संजय चौहान के बेटे चंदन सिंह चौहान रालोद-सपा गठबंधन के उम्मीदवार हैं।

जाहिर है कि चंदन सिंह चौहान को इस प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले में अपने बाबा और पिता दोनों की लाज बचानी होगी। चंदन सिंह चौहान युवा हैं। उन्होंने 2017 का विधान सभा चुनाव खतौली सीट से लड़ा था। इसमें उन्हें भाजपा के विक्रम सिंह सैनी ने 31374 मतों के अंतर से पराजित किया था जबकि मीरापुर सीट से 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के अवतार सिंह भड़ाना ने 193 मतों के अंतर से सपा उम्मीदवार लियाकत अली को पराजित किया था। मीरापुर सीट पर इस बार 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। चंदन सिंह चौहान सपा के समर्थन से राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी हैं। उनके सामने भाजपा ने उन्हीं के गुर्जर बिरादरी के बागपत निवासी प्रशांत चौधरी को मैदान में उतारा है। इनके अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मोहम्मद सालीम को और कांग्रेस ने जमील अहमद को उम्मीदवार बनाया है।

इस सीट पर मुख्य मुकाबला सपा रालोद गठबंधन और भाजपा के बीच है। इस विधानसभा क्षेत्र में 3.14 लाख मतदाता हैं। इनमें लगभग 1.20 लाख मुस्लिम, 53 हजार दलित, 34 हजार जाट, 20 हजार गुर्जर, 11 हजार राजपूत, 22 हजार सैनी, 25 हजार कश्यप और प्रजापति, 16 हजार पाल और अन्य जातियों के मतदाता हैं। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुधीर कुमार कहते हैं कि इस चुनाव में मुस्लिम और जाट मतदाताओं से सपा रालोद गठबंधन को समर्थन मिलने की पूरी उम्मीद है। साथ ही भाजपा प्रत्याशी प्रशांत गुर्जर को बागपत जिले का निवासी बता कर भी गठबंधन के उम्मीदवार लाभ लेने की कोशिश में है।

कांग्रेस उम्मीदवार मौलाना जमील कासमी 2012 में इसी सीट से बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। इस बार वह कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। जबकि बसपा ने मोहम्मद सालीम को उम्मीदवार बनाया है। सपा रालोद गठबंधन के प्रचार अभियान में मुस्लिम मतों के विभाजन को रोकने पर जोर दिया जा रहा है। जाहिर है कि दो प्रमुख दलों के मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में होने पर मुस्लिम मतों में विभाजन भाजपा की राह को आसान कर देता है। मुस्लिम मतों में बंटवारे के भरोसे खुद को मजबूत मान रहे प्रशांत चौधरी पहले बसपा के विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं। वह इस सीट पर पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में जिला पंचायत अध्यक्ष डा. निरवाल के साथ पूरे दमखम के साथ प्रचार अभियान में जुटे हैं। सत्ता विरोधी बयार का कुछ ग्रामीण इलाकों में भाजपा उम्मीदवार को सामना भी करना पड़ रहा है। वहीं, गठबंधन के उम्मीदवार चौहान के लिये इस सीट पर अपनी पुश्तैनी साख बचाने की चुनौती है। उन्हें भारतीय किसान यूनियन के परोक्ष समर्थन का भी लाभ मिलने की उम्मीद है।