मेरठ. मेरठ के गंगानगर में एडवोकेट ओमकार सिंह तोमर के आत्महत्या करने का मामला हस्तिनापुर विधायक दिनेश खटीक के गले की फांस बनता जा रहा है। अधिवक्ता के परिजनों व ग्रामीणों ने हस्तिनापुर विधायक के खिलाफ महापंचायत का ऐलान करने और उनके गांव में प्रवेश पर रोक लगाने संबंधित पोस्टर लगाने की बात कही है। रविवार सुबह करीब 10 बजे गमगीन माहौल में खादर क्षेत्र के गांधी घाट पर मृतक अधिवक्ता का अंतिम संस्कार कर दिया गया। जिसके बाद शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा के दौरान ग्रामीणों में हस्तिनपुर विधायक के खिलाफ आक्रोश नजर आया।
मृतक के पुत्र लव ने शोक सभा के दिन क्षेत्र क्षेत्र के लोगों को बुलाकर हस्तिनापुर विधायक के खिलाफ महापंचायत करने का एलान किया। परिजनों का कहना है कि आसपास के गांव में विधायक को प्रवेश न दिए जाने को लेकर बोर्ड लगाए जाएंगे। गमगीन माहौल में ग्रामीणों के समक्ष मृतक के पुत्र लव ने बताया कि अपने पिता की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे तथा इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री से की जाएगी। जानकारी के अनुसार मृतक एडवोकेट ओमकार तोमर का बड़ा पुत्र हाईकोर्ट में एडवोकेट है।
अधिवक्ता ने शनिवार को फांसी लगाकर जान दे दी थी।सुसाइड नोट में हस्तिनापुर विधायक दिनेश खटीक और एक ग्राम प्रधान पर उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। बताया गया कि अधिवक्ता का बेटा हाईकोर्ट में वकील है और उसका पत्नी से विवाद चल रहा है। इसी बात को लेकर दोनों में विधायक समझौता करा रहे थे। अधिवक्ता की मौत के बाद गुस्साए वकीलों ने गंगानगर थाने में हंगामा किया। सुसाइड नोट के आधार पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की और विधायक के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद ही शव को उठने दिया था।
हस्तिनापुर विधायक दिनेश खटीक को एफआईआर से बचाने के लिए कनेक्टिविटी के तार तक काट दिए। आठ घंटे तक पुलिस व अधिवक्ताओं के बीच खूब गहमागहमी हुई। यह मामला लखनऊ तक भी गूंज गया। अधिवक्ताओं ने फेसबुक, टि्वटर पर डीजीपी को इसकी जानकारी दी। काफी किरकिरी होने के बाद पुलिस ने भाजपा विधायक को नामजद करते हुए 15 खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। अधिवक्ता ओंकार सिंह तोमर की खुदकुशी करने की सूचना पर इंस्पेक्टर गंगानगर बिजेंद्र सिंह राणा 11 बजे ईशापुरम पहुंचे थे। ओमकार तोमर के पास मिले सुसाइड नोट में भाजपा विधायक दिनेश खटीक का नाम देखते ही पुलिस में खलबली मच गई।
पुलिस ने सबसे पहले सुसाइड नोट को सील कर दिया। यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को मिली तो वह भी मामले को रफा-दफा करने में लग गए। अधिवक्ता की मौत के मामले में विधायक का नाम एफआइआर से कैसे बचाए। इसको लेकर खूब प्रयास भी हुए।