मुजफ्फरनगर. जिले में होलिका पूजन पर्व धूमधाम से मनाया गया। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को परंपरागत रूप से मनाए जाने वाले होली पर्व पर जिले में कुल 1147 स्थानों पर होली लगाई गई। महिलाओं ने परंपरागत रूप से अपने पुत्रों व बेटियों के साथ पहुंचकर होलिका पूजन किया और उनकी कुशलता को मन्नत मांगी। इस दौरान कच्चे सूत को होली के चारों ओर लपेटते हुए उन्होंने होलिका की परिक्रमा की। इस दौरान फल, पैसे और आटा आदि भी अर्पित किया गया। होलिका पूजन के अवसर पर गाय के गोबर से विशेष रूप से बनाए जाने वाले बरकुल्लों की माला भी अर्पित की गई।
होली के पर्व पर हालांकि इस बार लगातार दूसरे वर्ष भी कोरोना का साया है लेकिन लोगों की श्रद्धा और उल्लास में कमी नही आई है। पंरंपरागत उल्लास के साथ ही होलिका पूजन किया गया। भारत माता चौक पर लगी होली को पूजने के लिए दूर दूर से महिलाएं पहुंचती हैं। इसके अलावा नगर में कई ऐसी होली हैं जो पिछले सौ वर्षो से भी अधिक समय से लग रही हैं। इन्हें पूजने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं घरों से निकली। कुछ महिलाओं ने चार अलग अलग मालाओं से होलिका पूजन किया। मान्यता है कि पहली माला पितरों के लिए, दूसरी माला पवनसुत हनुमान जी के लिए, तीसरी माला माता शीतला देवी के लिए और चौथी माला परिवार में सुख समृद्धि के साथ ही विपदाओं से बचाव के लिए अर्पित की जाती है। महिलाओं ने होलिका पूजन करने के साथ ही होली की परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत भी लपेटा। होलिका पूजन को लेकर सबसे पौराणिक प्रसंग भक्त प्रहलाद का ही माना जाता है जिसे होलिका अपनी गोद में लेकर अपने वरदान के अनुसार अग्नि स्नान को बैठ गई थी लेकिन होलिका जल गई थी और प्रह्रलाद बच निकला था। तभी से आदिकाल से होलिका पजन करने की परंपरा है।
जिले में सभी 1147 स्थानों पर होलिका पूजन को लेकर पुलिस अलर्ट पर रही। इस दौरान कहीं से भी किसी तरह की कोई अप्रिय घटना की सूचना नही मिली। होलिका दहन से पूर्व शहरों में आसपास के मौहल्लों से लोग और गांवों में ग्रामीण होलिका के ईदगिर्द एकत्र हुए और जमकर हास परिहास करते हुए होली है के नारें लगाए। इसके बाद प्रदोपकाल से होलिका दहन करने का क्रम शुरू हुआ। शाम को 6:32 बजे के बाद से होलिका दहन करना शुरू कर दिया गया था। यह रात में साढे नौ बजे तक जारी रहा। कई स्थानों पर होलिका दहन स्थल पर डीजे आदि भी लगाए गए थे।
मुजफ्फरनगर होलिका दहन के अवसर पर प्रज्जवलित अग्नि में लोगों ने बड़ी संख्या में नए अनाज की बाल को भूना। कुछ लोगों ने गोले को भी भूना वहीं होलिका में प्रसाद भी अर्पित किया। जलती होली की किसी ने तीन तो किसी ने पांच या सात परिक्रमा की। माना जाता है कि होलिका दहन के बाद उसकी आग को अपने घर ले जाने की भी भी परंपरा है। पंडित संजीव शंकर के अनुसार होली की राख को घर के पूर्व दक्षिण कोण यानि आग्नेय कोण में स्थापित करना चाहिए। इस दिशा में होली की राख रखने से व्यापार और व्यवसायिक जीवन में लाभ होता है और व्यक्ति उन्नति के रास्ते पर आगे बढता है। ऐसा करने से घर में सुख शांति भी बनी रहती है।