विपक्षी दलों की बेंगलुरु में हुई बैठक के बाद अब संसद के मानसूत्र सत्र में भी विपक्षी एकता मजबूत नजर आ रही है। चाहे कांग्रेस हो या आप या फिर इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दल सभी एक दूसरे का सदन में पूरा समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद संसद में कांग्रेस की तरफ से पूरी कमान पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने संभाल ली है। खरगे दोनों सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले रोज विपक्षी दलों के सदस्यों की बैठक कर मोदी सरकार को घेरने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। खरगे राज्यसभा में भी सरकार को आक्रामक तरीके से घेर रहे हैं। जबकि कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी लोकसभा में ज्यादा सक्रिय नजर आ रही हैं। मंगलवार को सोनिया जैसे ही संसद पहुंचीं, तो उन्होंने सबसे पहले धरने पर बैठे आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह से मुलाकात की। सोनिया ने संजय सिंह से हालचाल जाना और तबियत का ध्यान रखने की सलाह देते हुए कहा कि आपको हमारा पूरा समर्थन है। इसी बीच ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि लोकसभा में सरकार के खिलाफ आ रहे अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी भी हिस्सा ले सकती हैं।

इन दिनों सोनिया गांधी ठीक उसी तरह से विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रही हैं जिस तरह वे 2004 में यूपीए को एक प्लेटफार्म पर ले आईं थीं, तब उन्हें सफलता भी मिली थी। कुछ वैसा ही प्रयास वे ‘2024’ के लिए कर रही हैं। कर्नाटक में हुई विपक्षी एकता की बैठक में सोनिया गांधी के डिनर में न केवल सभी नेता शामिल हुए, बल्कि बैठक में उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर भी विपक्षी गठबंधन सहमत नजर आया। संसद सत्र के पहले दिन उनकी पीएम मोदी से लोकसभा में मुलाकात भी हुई थी। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच करीब एक मिनट तक बातचीत भी हुई। इस दौरान सोनिया ने पीएम मोदी से मणिपुर की घटना पर बयान की बात भी रखी। पीएम मोदी ने सोनिया की बात सुनने के बाद कहा कि ठीक है, हम इसे देखेंगे।

कांग्रेस पार्टी की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, ये बात ठीक है कि सोनिया गांधी ने पहले भी विपक्ष को एक साथ लेकर चलने की कोशिश की है। वे इसी प्रयास में लगी रहीं कि एक समान विचारधारा वाले सभी दल साथ आ जाएं। साल 2004 की राजनीतिक परिस्थितियों में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ था। उस वक्त भी सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट किया था। उसके बाद लगातार दस साल केंद्र में यूपीए की सरकार रही।