मुजफ्फरनगर। शरीर के लिए गुड़, खांड को अमृत कहा जाता है। प्रदेश सरकार ने खांड का उत्पादन बढ़ाने के लिए चीनी मिल से 15 किमी पर लाइसेंस के नियम को हटाकर साढे सात किमी किया। जिले में 36 लाइसेंस बढ़े, कुल 108 लाइसेंस हो गए, लेकिन पेराई मात्र 16 में ही हो पा रही है। समस्याओं से जूझ रहा यह उद्योग दम तोड़ रहा है।
वर्ष 1985 से पहले जिले में 500 से अधिक खांडसारी इकाइयां काम करती थीं। जिले का अर्थचक्र क्रेशरों के माध्यम से ही चलता था। अब चीनी मिल से 15 किमी के स्थान पर साढे सात किमी की दूरी पर लाइसेंस देने का आदेश जारी हुआ।
जनपद में सरकार के इस आदेश के बाद 36 नए लाइसेंस भी जारी हुए। जनपद में इस समय कुल 108 लाइसेंस हैं। वर्ष 2022-23 में जिले में 20 क्रेशर चले। इनमें 44 हजार क्विंटल गुड़, 63 हजार क्विंटल राब का उत्पादन हुआ। इन क्रेशरों ने 9.31 लाख क्विंटल गन्ने की खरीदारी की।
इस साल यह संख्या घट गई है। इस बार केवल 16 क्रेशर ही चल रहे हैं। इनमें छह क्रेशर ऐसे हैं जिनके लाइसेंस बहुत पुराने हैं। दस क्रेशर नए लाइसेंस वालों के चल रहे हैं। खांड और राब को सही प्रचार नहीं मिलने से यह स्थिति सामने आई है। इन क्रेशरों में लेबर की समस्या सबसे बड़ी है। प्राइसवार में गन्ना खरीदना इनके लिए चुनौती है। क्रेशर को गन्ना नकद खरीदना पड़ता है, इस कारण आर्थिक समस्या भी रहती है।
शहर के प्रमुख चिकित्सक डॉ. सुशील राजवंशी का कहना है कि चीनी का प्रयोग हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है। चीनी बनाने में केमिकल का प्रयोग होता है। हमें अपने घरेलू प्रयोग में गुड़, राब और खांड को लाना चाहिए।
जिले में अब केवल 16 क्रेशर ही ऐसे बचे हैं जिनमें गन्ने की पेराई हो रहा है। इनमें आदर्श खांडसारी उद्योग हैबतपुर, जमशेद केन क्रेशर चरथावल, केशोराम क्रेशर सिकंदरपुर कलां, अरिहंत खांडसारी जसौला, जगदीश केन क्रेशर बड़सू, गोविंद क्रेशर बड़सू, रघुवीरी क्रेशर अहमदगढ़ मजरा, बनवारी लाल क्रेशर मुजफ्फरनगर, स्वीट आर्गेनिक्स खुब्बापुर, केन क्रेशिंग कढ़ली, त्यागी क्रेशर बसधाड़ा, फूल सिंह क्रेशर मुस्तफाबाद, किसान क्रेशर पुरबालिया, संतरात उद्योग तिसंग, लक्ष्मी तिसंग, अरिहंत क्रेशर खेड़ी कुरैश में क्रेशर संचालित हैं।
जिले के खांडसारी निरीक्षक प्रमोद कुमार का कहना है कि खांडसारी उद्योग के सामने सबसे बड़ी समस्या लेबर को लेकर है। प्राइसवार में गन्ना न मिलने की समस्या, आर्थिक समस्या मुख्य है। खांड और राब की मार्केटिंग भी अच्छी नहीं है। सरकारी स्तर पर खांडसारी उद्योग को कोई राहत नहीं मिलती है।
गांव बड़सू में क्रेशर के संचालक प्रभात सैनी का कहना है कि हमारा क्रेशर 1957 से चल रहा है। विपरीत परिस्थितियों में भी हमने क्रेशर बंद नहीं किया। हमारी राब खतौली के आढ़ती के माध्यम से गुजरात और राजस्थान जाती है। खांड की डिमांड नहीं है।
हमारे सामने महंगी बिजली और लेबर का पीएफ सबसे बड़ी समस्या है। लेबर परमानेंट नहीं रहती है, इससे पीएफ में समस्या है। इस लघु उद्याेग पर बिजली के दामों में छूट मिलनी चाहिए। पीएफ की बाध्यता समाप्त होनी चाहिए।
किसान नेता राजू अहलावत का कहना है कि जिस तरह सरकार और जनता बीमारियों से बचने के लिए मोटे अनाज का महत्व समझ रही है। इसी तरह शरीर के लिए हानिकारक बनी चीनी से बचने के लिए खांड को अपनाना होगा। सरकार को मोटे अनाज की तरह गुड़ और खांड का प्रचार भी करना चाहिए।