तुर्की : तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगन ने इशारों इशारों में मुस्लिम देशों को इजरायल का डर दिखा दिया है. परोक्ष तौर पर अपील की है कि अगर मुस्लिम देश साथ नहीं आए तो उन्हें इजरायल से खतरा है. यहां तक की तुर्की ने खुद के लिए भी इजरायल से खतरे की बात कही है. वैसे दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं तो मध्य पूर्व में 20 इस्लामिक देश.
हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि मुस्लिम देशों में इज़रायल के खिलाफ़ एकजुट होने की मांग बढ़ रही है. खासतौर पर गाजा और फिर लेबनान में इजरायल के आक्रमक तेवरों को लेकर. इजरायल के हमले की जद में तकरीबन पूरा मध्य पूर्व ही फंसता हुआ लग रहा है.
मध्य पूर्व एक अंतरमहाद्वीपीय क्षेत्र है जिसमें लगभग 20 देश शामिल हैं. ये सभी देश आमतौर पर इस्लामी देश हैं. इनके बीच केवल इजरायल अकेला यहूदी देश है. लेकिन उसके चलते फलीस्तीन को प्रभावित हुआ ही. अब लेबनान की ओर भी उसकी सेनाएं चढ़ रही हैं.
इसके अलावा इजरायल ने अपनी मिसाइलों के मुंह यमन में हौथी और सीरिया में ईरानी ठिकानों की ओर भी खोले हैं. यानि यमन और सीरिया पर भी असर पड़ रहा है. ईरान ने इजरायल पर 200 मिसाइलें दागीं. इसका मतलब ये है कि ये टकराव मध्य पूर्व में फैलने वाला है. जिसका मतलब साफ है कि यहां अमेरिका और मित्र देशों की मौजूदगी बढ़ेगी. वैसे हम बता देते हैं कि मध्य पूर्व में कौन कौैन से इस्लामिक देश हैं.
अरब प्रायद्वीप के देश: बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात
अन्य मध्य पूर्वी देश: मिस्र, ईरान, इराक, इजरायल, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, तुर्की, यमन
मध्य पूर्व दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित है. मध्य पूर्व में अरब, तुर्क, फारसी, कुर्द और यहूदी सहित कई जातीय समूह रहते हैं. इस क्षेत्र में इस्लाम सबसे प्रचलित धर्म है.
इस समय मध्य पूर्व में इजरायल को लेकर बहुत बेचैनी है. हर किसी को लग रहा है कि इजरायल के कंधे पर बंदूक रखकर अमेरिका किस तरह मुस्लिम देशों की गर्दन पर हाथ बढ़ा रहा है. यही डर उन्हें पास ला रहा है. ये सोचने पर मजबूर कर रहा है कि उन्हें साथ आना होगा. इसी वजह से तुर्की ने पहली बार कहा कि इजरायल से तो उसको भी डर है.
विश्व में मुस्लिम बहुल देशों का प्रतिशत सबसे अधिक है, जहां 20 देशों और क्षेत्रों में से 17 में मुस्लिम जनसंख्या 75% से अधिक है. इसके अपवाद केवल इजरायल, लेबनान और सूडान हैं.
मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में अनुमानतः 315 मिलियन मुसलमान रहते हैं, जो विश्व की मुस्लिम आबादी का लगभग 20% है. इस क्षेत्र में बड़ी मुस्लिम आबादी वाले कुछ देश शामिल हैं
इस्लामिक सहयोग संगठन , जो 57 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है. उसने ने गाजा में बढ़ती सैन्य स्थिति और नागरिकों को प्रभावित करने वाले मानवीय संकट के मद्देनजर सऊदी अरब में एक “तत्काल असाधारण बैठक” बुलाई है. यह बैठक हिंसा और फिलिस्तीनी जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में इस्लामी राष्ट्रों के बीच सामूहिक चिंता को दिखा रही है. पहले कभी ऐसे मुद्दे पर ओआईसी की बैठक नहीं बुलाई गई.
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने इज़रायली “विस्तारवाद” और “राज्य आतंकवाद” का डर बताते हुएएक इस्लामिक गठबंधन के गठन की पैरवी की है. उनका कहना है कि इजरायल पूरे मध्य पूर्व ही नहीं बल्कि इस्लामिक देशों के वर्चस्व पर असर डाल रहा है. उन्हें खत्म करने के प्लान पर काम कर रहा है. उसे पीछे से अमेरिका पर प्रश्रय दे रहा है.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि गाजा में इज़रायली कार्रवाइयों को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए मुस्लिम देशों के बीच एक संयुक्त मोर्चा जरूरी है. हालांकि ये गठबंधन कैसे बनेगा, इस पर सवाल है.
हालांकि दो मुस्लिम-बहुल देश अब तक इजरायल के साथ खड़े थे. वो भी फिलहाल चुप हैं. आने वाले समय में उन्हें डर है कि उनकी आतंरिक स्थितियों के कारण उन पर दबाव बढ़ेगा. उनकी मुस्लिम जनता उन पर दबाव डालेग कि इजरायल के खिलाफ खड़े हों. हालांकि मिस्र और जॉर्डन के साथ इजरायल की लंबे समय से शांति संधियां हैं.
करीब करीब सभी मुस्लिम देशों में ये संदेश जा रहा है कि ये हमला केवल गाजा और लेबनान पर नहीं बल्कि इस्लाम पर है. अगर इजरायल को नहीं रोका गया तो वह बेअंदाज हो जाएगा.
इसी वजह से दुनियाभर के मुस्लिम देश करीब आ रहे हैं. नई स्थितियों में वह साथ मिलकर इजरायल पर दबाव तो डाल ही सकते हैं. लगता है कि फिलहाल वो यही करेंगे.