चौधरी अजित सिंह ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि मेरा उद्देश्य लोगों में आपसी सौहार्द कायम करना था वह हो गया, यही मेरी जीत है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने राजनीति में अपनी अलग छवि बनाकर रखी। उन्होंने कभी भी धर्म और जाति के नाम पर लोगों को भड़काने का काम नहीं किया। 2013 के दंगे हुए और जिले में काफी संख्या में लोग मरे तो उनका मन व्यथित रहा।

यह अजित सिंह का ही व्यक्तित्व था कि वह मुसलमान और जाट दोनों पक्षों के बीच पहुंचे। उन्होंने लोगों के बीच बनी खाई को दूर करने के लिए ही 2019 का चुनाव बागपत छोड़ मुजफ्फरनगर से लड़ने का निर्णय लिया।

लोकसभा चुनाव में जाट समाज में भले ही दस-20 प्रतिशत बिखराव रहा हो, लेकिन मुस्लिम समाज एक तरफा उनको मिला। बावजूद इसके परिस्थितियों वश उनकी कुछ मतों से हार हुई। हार के बाद कार्यकर्ता हताश थे और मनोबल गिरा था, चौधरी 15 दिन बाद जिले में आए और उन्होंने तीन स्थानों बुढ़ाना, शहर के लोक निर्माण विभाग और पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।

उनका सबके लिए एक ही वाक्य था। हार-जीत राजनीति का हिस्सा है। मैं यहां आपसी सौहार्द के लिए आया था। सदियों से बने भाईचारे को कायम रखना मेरा उद्देश्य है मैं अपने मिशन में सफल हुआ हूं, यही मेरी जीत है।