मुजफ्फरनगर। बेबस शारदा की पीड़ा जिसने सुनीं, उसकी आंखें भर आईं। पहले जिला अस्पताल और फिर मेरठ मेडिकल कॉलेज में एक माह तक इलाज के बावजूद राहुल को बचाया नहीं जा सका। अंततः मदद से ही सही, बेटे की चिता जल गई। राख भी ठंडी हो जाएगी लेकिन सवाल सुलग रहे हैं। सरकार के मुफ्त इलाज के दावे के बावजूद राहुल की मां को सरकारी अस्पतालों में इलाज में खर्च ने कैसे पाई-पाई के लिए मोहताज बना दिया।

आजमगढ़ जिले की रहने वाली शारदा अपने बेटे राहुल यादव के साथ रोजगार की तलाश में एक वर्ष पहले मुजफ्फरनगर आई थीं। वह सुजड़ू में रह रही हैं। कुछ समय पूर्व पति की मौत के बाद से राहुल ही घर में कमाने वाला था। वह यहां एक फैक्टरी में मजदूर था। परिवार की गुजर हो रही थी। एक माह पहले राहुल फेफड़ों के संक्रमण की चपेट में आ गया। जिला चिकित्सालय में उपचार के लिए मेरठ मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए कहा गया था। एक महीने तक इलाज कराने के बावजूद न शारदा का बेटा बचा और न ही पैसा।

साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष शालू सैनी ने बताया कि उनकी संस्था कोराना काल से अब तक सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार करा चुकी है।

सीएमओ डॉ. महावीर सिंह फौजदार ने कहा कि एंबुलेंस या किसी अन्य सहायता के लिए किसी ने जानकारी नहीं दी। वह इसकी जानकारी जुटाएंगे।