मुजफ्फरनगर। पेपर उद्योग पर संकट के बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं। सीजन के बावजूद मांग घटने से उद्योग पर मंदी की मार है। उत्पादन अधिक और मांग कम होने से इंडस्ट्री के सामने समस्या खड़ी हो गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह निर्यात होने वाले पेपर में कमी आना है। अब अधिकतर सप्लाई देश में ही हो रही है।
देश में पेपर उद्योग में मुजफ्फरनगर पहले स्थान पर है। यहां क्राफ्ट पेपर 90 हजार टन प्रति माह उत्पादन होता है। राइटिंग पेपर का 15,000 टन, डुप्लेक्स का 16,000 टन, अन्य कागज जैसे टिश्यू, पोस्टर इत्यादि 10,000 टन का उत्पादन होता है। इस प्रकार जिले में कुल 1,30,000 टन प्रति माह कागज का उत्पादन हो रहा है।
मंदी की मार से उद्योग पर संकट खड़ा हो गया है, जिसकी वजह से मिलों को भारी नुक़सान का सामना करना पड़ रहा है। पेपर मिलों में मंदी का सबसे बड़ा कारण मांग से ज़्यादा उत्पादन होना है। कच्चे कागज के दाम बहुत बढ़ गए है जबकि तैयार माल के दाम पूरे नहीं मिल पा रहे हैं। पहले माल एक्सपोर्ट भी हो रहा था जो अब नहीं हो रहा है। एक माह में पेपर का 450 करोड़ का व्यापार है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का असर भी पड़ा है। देश से जिन वस्तुओं का एक्सपोर्ट कम हुआ है, उनमें पेपर भी शामिल है। देश में अब पहले के मुकाबले सामान्य उत्पाद कम बिक रहे हैं, जिस कारण डिब्बे कम लग रहे हैं। पेपर मिल मालिकों का कहना है कि मिल चलाएंगे तो उत्पादन उतना ही होगा, जितनी मिल की क्षमता है। मिल बंद कर देंगे तो मिल में लगा सब पैसा डूब जाएगा।
पेपर उद्योग यहां रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। जनपद की 35 पेपर मिलों में लगभग 40 हजार लोग रोजगार पा रहे हैं। पेपर मिलों में इंजीनियर से लेकर मजूदर तक काम कर रहे हैं। पेपर मिल एसोसिएशन के प्रदेश के चेयरमैन पंकज अग्रवाल का कहना है कि पेपर उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है। कच्चे माल के दाम बढ़ गए हैं। तैयार माल के दाम पहले से भी कम मिल रहे हैं। मांग कम और स्टॉक अधिक होने से उत्पाद के दाम पूरे नहीं मिल पा रहे हैं। विदेशों में उत्पादों की मांग पहले से कम हुई है।
पेपर मिल उद्योग से जुड़े अमित गर्ग का कहना है कि मई के अंत से पेपर की मांग बढ़ जाती थी, जून में इसका अच्छा सीजन रहता था। इस बार सीजन ने भी नाउम्मीद कर दिया है। उत्पादन अधिक हो रहा है और बाजार में मांग कम है। दाम भी ठीक नहीं मिल पा रहा है।
उद्यमी भीमसेन कंसल का कहना है कि पेपर बनाने में जो लागत आ रही है, उसके मुकाबले बिक्री में उतना लाभ नहीं हो पा रहा है। उत्पादन के मुकाबले खपत कम है। पेपर मिलो में स्टॉक भरा पड़ा है। सीजन के हिसाब से मांग नहीं है।