मुजफ्फरनगर। विधानसभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। प्रमुख दलों ने अधिकतर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, लेकिन कांग्रेस की सूची अटकी है। जिले की एक भी सीट पर प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। भाजपा, बसपा और सपा-रालोद गठबंधन की निगाह भी कांग्रेस की सूची पर टिकी है

साल 2017 का चुनाव कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन में लड़ा था। सबसे नजदीकी मुकाबला सुरक्षित सीट पुरकाजी और मीरापुर विधानसभा में हुआ था। पुरकाजी में कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व मंत्री दीपक कुमार भाजपा के प्रमोद उटवाल से बेहद कम अंतर से हार गए थे। मीरापुर में भाजपा के अवतार भड़ाना ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के लियाकत अली को सिर्फ 194 मतों से हराया था। हालांकि मुकाबला अन्य सीटों पर भी हुआ था, लेकिन इन दोनों सीटों पर सबसे कम अंतर रहा था। इस बार सपा और कांग्रेस की राह अलग हो गई है। कांग्रेस से टिकट के कई दावेदार हैं, लेकिन अभी तक प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की गई है। किसान आंदोलन के बाद बदले हालात में चुनाव को लेकर खींचतान चल रही है। ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशी भी समीकरण बिगाड़ सकते हैं। मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारे गए तो सपा-रालोद गठबंधन के लिए बसपा के बाद कांग्रेस चुनौती होगी।

कांग्रेस में लंबे समय तक रहने वाले पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पूर्व विधायक पंकज मलिक अब सपा का हिस्सा है। चुनाव से पहले पिता-पुत्र सपा में शामिल हो गए थे। पंकज मलिक ने कांग्रेस के टिकट पर 2012 में शामली से चुनाव जीता था। इस बार सपा के टिकट पर वह चरथावल से चुनाव मैदान में है।

पूर्व मंत्री सईदुज्जमां के बेटे सलमान सईद भी कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस के टिकट पर 2016 में सदर सीट से सलमान ने उपचुनाव लड़ा था। इस बार वह चरथावल से बसपा के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं।

सपा-रालोद गठबंधन भी मुजफ्फरनगर सदर सीट का प्रत्याशी घोषित नहीं कर पा रही है। रालोद के हिस्से वाली सीट पर प्रत्याशी का गणित सुलझाने में गठबंधन अब तक नाकाम रहा है। शहर में इस बार गठबंधन ब्राह्मण या अन्य किसी पिछड़ी जाति से भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार सकता है।