चरथावल (मुजफ्फरनगर)। बादाम के पेड़ पर पहली बार फूल आने के बाद किसान उदय सिंह पुंडीर गदगद है। जैविक विधि से रोग मुक्त खेती करना उनका शौक है। परंपरागत खेती गन्ने और गेहूं के साथ डेढ़ बीघा जमीन में उनकी पहल ग्रामीणों के लिए मिसाल बनी है।
दूधली के किसान उदय को तीन साल पहले हरियाणा के कुरूक्षेत्र के उचाना गांव में भ्रमण करने गए थे। वहां बादाम का पूरा बाग देखा तो उसकी खेती करने को लालायित हो गए। उसी साल हापुड़ नर्सरी से कैलिफॉर्निया किस्म का बादाम का एक पेड़ अपनी बागवानी में लाकर प्रयोग के रूप लगाया था। वर्तमान में पेड़ फूलों से महका तो बादाम आने को लेकर परिजन उत्साहित हो गए। वे 30 भूमि के स्वामी है। साढ़े 28 बीघा में ईख और गन्ना बोते है। सिर्फ डेढ़ बीघा में औषधीय पौधों को लगाकर प्रकृति के नजदीक रहते है।
किसान उदय पुंडीर कहते है बाग में सहजन और परिजात (हार सिंगार) के पेड़ लगाए है। उनके पत्तों को सुखाने के बाद चाय के रूप में पीने से उनकी शुगर लेवल सामान्य रहने लगी। कहना है कि हर किसान को कीटनाशक फल और सब्जी से बचकर कुछ भूमि में स्वदेशी तकनीक से सब्जी और फल उगाना चाहिए। वह हर सब्जी खुद उगाकर घर में उपयोग करते है। बाग में बादाम के अलावा अमरूद, आम, नींबू, आडू के पेड़ लगाए है। औषधीय पौधों में काला बांसा, तेजपत्ता, मरूआ, पोदीना की पैदावार अच्छी खासी करते है। गांव के बच्चे बाग में घूमने आते है और फलों का लुत्फ उठाते हैं। रिश्तेदार भी सीजनल सब्जी और फल का स्वाद लेते है।