नई दिल्ली. आईपीएल हमेशा से ही खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने वाला मंच साबित हुआ है. भारतीय क्रिकेट में कई स्टार खिलाड़ी आईपीएल की सीढ़ियां चढ़कर ही इस मुकाम तक पहुंचे हैं. आईपीएल के 15वें सीजन में भी ऐसे कई खिलाड़ी चमके हैं, जिन्हें इससे पहले कम ही लोग पहचानते थे. इसमें आयुष बदोनी, तिलक वर्मा, जीतेश शर्मा जैसे खिलाड़ी तो शामिल हैं ही, मुंबई इंडियंस का एक स्पिनर भी इस लिस्ट में है. आधा सीजन बीत जाने के बाद इसे मुंबई टीम ने अपने साथ जोड़ा और डेब्यू मैच में ही इस स्पिनर ने अपनी किफायती गेंदबाजी से सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. इस गेंदबाज का नाम कार्तिकेय सिंह हैं. जितना शानदार कार्तिकेय का आईपीएल डेब्यू रहा, उतना ही संघर्षों से भरा रहा उनका क्रिकेटर बनने का सफर.

बाएं हाथ के स्पिनर कार्तिकेय सिंह ने बीते हफ्ते राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ अपना आईपीएल डेब्यू किया था. अपने पहले ही मैच में इस गेंदबाज ने अपनी रिस्ट स्पिन, गुगली, फिंगर स्पिन और कैरम बॉल से दिग्गजों को प्रभावित किया. लेकिन, आप शायद यह नहीं जानते होंगे कि कार्तिकेय 6 महीने पहले तक सिर्फ एक फिंगर स्पिनर थे. उनके कोच संजय भारद्वाज ने ईएसपीएनक्रिकइंफो को बताया कार्तिकेय ने टी20 में कामयाब होने के लिए महज 6 महीने के भीतर ही खुद को फिंगर के साथ रिस्ट स्पिनर के तौर पर भी ढाल लिया.

15 साल की उम्र में कार्तिकेय दिल्ली आए
छोटे शहर और तंगहाली से निकलकर क्रिकेटर बनने का सपना देखने वाले हर लड़के की जिंदगी में संघर्ष, तकलीफ तो होती ही है, तो कार्तिकेय की जिंदगी भी इससे अलग नहीं थी. उन्होंने कानपुर में क्रिकेट खेलनी शुरू की. पिता यूपी पुलिस में कांस्टेबल थे, सो इतनी कमाई नहीं होती थी कि क्रिकेट कोचिंग का महंगा खर्चा उठा लें. फिर भी वो कार्तिकेय के सपने को पूरा करने से पीछे नहीं हटे. लेकिन उत्तर प्रदेश में मौका नहीं मिलने के बाद आज से 9 साल पहले 15 साल की उम्र में कार्तिकेय ने कानपुर से दिल्ली की ट्रेन पकड़ी. उस वक्त पीएसी में सिपाही पिता से यह वादा किया वो खुद के दम पर क्रिकेटर बनने का सपना पूरा करेंगे.

अमित मिश्रा और गंभीर के कोच ने मौका दिया
दिल्ली में कार्तिकेय सिर्फ एक दोस्त राधेश्याम को जानते थे, जो क्रिकेट खेलता था. वो कार्तिकेय को कई क्लब में लेकर गया. ताकि उन्हें डीडीसीए की लाग में खेलने का मौका मिले. लेकिन हर क्लब ने उनसे मोटी फीस मांगी. इसके बाद, कार्तिकेय संजय भारद्वाज के पास पहुंचे और अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में सब कुछ साफ-साफ बता दिया, तो उन्होंने कार्तिकेय को नेट में एक गेंद डालने का मौका दिया. सिर्फ एक गेंद बाद ही संजय ने उन्हें कोचिंग देने का फैसला कर लिया. भारद्वाज को यह बात आज भी याद है. उन्होंने कहा, “कार्तिकेय का गेंदबाजी एक्शन काफी सरल था और वो उंगलियों का बहुत अच्छा इस्तेमाल करता था, मुझे उसकी यही खूबी भा गई.”

10 रुपये बचाने के लिए कई मील पैदल चले
अब कार्तिकेय की कोचिंग का तो इंतजाम हो गया लेकिन खाना और रहना उन्हें खुद ही देखना था. ऐसे में कार्तिकेय ने एकेडमी से 80 किमी दूर गाजियाबाद से सटे मसूरी गांव में एक फैक्ट्री में मजदूरी शुरू कर दी. रहने के लिए कमरा भी वहीं मिला. रात भर मजदूरी करते और फिर सुबह-सुबह कोचिंग के लिए एकेडमी पहुंच जाते. कई मील सिर्फ इसलिए पैदल चलते कि 10 रुपये बचा लें और उससे अपने लिए बिस्किट का एक पैकेट खरीद सकें. कोच भारद्वाज को जब पूरी कहानी पता चली तो उन्होंने एकेडमी के कुक के साथ ही कार्तिकेय के रहने का इंतजाम कर दिया.

एक साल दिन में खाना ही नहीं खाया
कोच संजय भारद्वाज को आज भी कार्तिकेय के एकेडमी में रहने का पहला दिन अच्छी तरह याद है. उन्होंने उस दिन को याद करते हुए क्रिकइंफो से कहा, ‘जब कुक ने उसको दोपहर का खाना दिया तो वो रो पड़ा था. क्योंकि उसने बीते 1 साल से दिन में खाना खाया ही नहीं था.’ इसके बाद कोच ने कार्तिकेय का स्थानीय स्कूल में दाखिला कराया और उनके क्रिकेटर बनने की कहानी असली शुरुआत हुई. उन्होंने ऐज ग्रुप क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन डीडीसीए के ट्रायल में 200 संभावितों में उन्हें नहीं चुना गया. इसके बाद संजय ने कार्तिकेय को मध्य प्रदेश भेज दिया.

4 साल पहले मध्य प्रदेश के लिए डेब्यू किया
भारद्वाज ने कहा, ‘मैंने कार्तिकेय की काबिलियत को देखते हुए अपने दोस्त और शहडोल क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव अजय द्विवेदी से बात की. वह 2 साल वहां से डिवीजन क्रिकेट खेले और हर साल 50-50 विकेट लिए.’ इसके बाद, किसी भी ऐज ग्रुप क्रिकेट में मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व किए बगैर कार्तिकेय को रणजी ट्रॉफी खेलने का मौका मिल गया. साल 2018 में उन्होंने रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया और बीते 9 साल के संघर्ष को आईपीएल के जरिए नया मुकाम मिला.