मुजफ्फरनगर। केंद्र सरकार ने गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) दस रुपये बढ़ाया है। किसान इस दाम से संतुष्ट नहीं है। किसानों का कहना है कि हर साल गन्ने पर लागत बढ़ रही है। इस दाम से किसानों का भला होने वाला नहीं है। सरकार को कम से कम पांच सौ रुपये प्रति क्विंटल दाम घोषित करना चाहिए। डीजल, उर्वरक, मजदूरी का खर्च किसान की कमर तोड़ रहा है।
भोकरहेड़ी निवासी किसान प्रदीप सहरावत का कहना है कि गन्ना की लागत के हिसाब से किसान को मुनाफा नहीं मिल रहा है। सरकार की उदासीन नीतियों के कारण किसान पिछड़ गया। कम से कम प्रतिवर्ष सरकार 50 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करें। किसान कर्ज के बोझ के तले दबा है। किसान की खुशहाली से ही देश की तरक्की संभव होगी।
गांव कपूरगढ़ के पूर्व प्रधान चुन्नू का कहना है कि सरकार ने गन्ना मूल्य में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी बहुत ही कम है, इस मूल्य वृद्धि से किसान का कोई भला होने वाला नहीं है। गन्ने की उत्पादन लागत बहुत बढ़ गई है। कम से कम 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करनी चाहिए थी।
गांव भैसानी निवासी किसान नवीन त्यागी का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा की गई गन्ना मूल्य में 10 रुपये की बढ़ोतरी से कुछ नहीं होगा। किसानों को गन्ने की फसल के लिए महंगे मूल्य में पेस्टीसाइड व डीजल खरीदना पड़ता है। गन्ना मूल्य कम से कम 450 रुपये होना चाहिए। केंद्र व प्रदेश सरकार को मिलकर गन्ना मूल्य बढ़ाना चाहिए।
जाटान के किसान प्रदीप आर्य का कहना है कि केंद्र सरकार ने गन्ने के मूल्य में जो 10 रुपये की बढ़ोतरी की है, वह नाकाफी है। पेस्टीसाइड, खाद और बीज की कीमत के अलावा बढ़ती मजदूरी को ध्यान में रखकर गन्ने का मूल्य घोषित करना चाहिए था। गन्ने का भाव 400 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए।
जानसठ के किसान सुभाष काकरान का कहना है कि दाम में बढ़ोतरी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। किसानों को गन्ना उत्पादन करने के लिए महंगा पेस्टीसाइड, महंगा डीजल, महंगी मजदूरी से भी जूझना पड़ता है। गन्ना मूल्य 600 रुपये क्विंटल होना चाहिए। केंद्र सरकार किसानों के साथ छल करने का काम कर रही है।