होशियारपुर। पंजाब के युवा कनाडा जाकर पैसे कमाना चाहते हैं, लेकिन जितनी मेहनत वहां पर करते हैं, उतनी अपने देश में करें तो हमारा गांव भी कनाडा से कम नहीं है। मैं भी कनाडा जाना चाहता था, लेकिन मुझे गांव में ही सही मौका मिल गया। आज मैं जितना यहां कमा रहा हूं, उतना शायद कनाडा में भी न कमा पाता। पैसा कमाने के लिए विदेश जाने को आतुर युवाओं को गुरदीपक सिंह सैनी की यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए। पंजाब के होशियारपुर के टांडा क्षेत्र के मद्दा गांव के रहने वाले 39 वर्षीय गुरदीपक ने विदेश जाने का सपना छोड़ देश में अपने पैरों पर खड़े होने का संकल्प लिया और इलाके में मिसाल बन कर उभरे।
गुरदीपक मशरूम की खेती करते हैं। 15 हजार रुपये में कारोबार शुरू किया था। अब हर महीने तीन से साढ़े तीन लाख रुपये कमाते हैं। उन्होंने अपने मशरूम फार्म पर 12 लोगों को रोजगार भी दिया है, जिनमें पांच महिलाएं शामिल हैं। अब इलाके के बाकी युवा भी खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
गुरदीपक सिंह सैनी कहते हैं, मैं साल 2006 में कनाडा जाना चाहता था, क्योंकि दोआबा क्षेत्र के अधिकतर युवा कनाडा में हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं। मैं भी वहां जाकर अपने सपने साकार करना चाहता था। सारे दस्तावेज तैयार थे। पैसे का भी इंतजाम हो गया था। बस वीजा मिलने का इंतजार था, लेकिन इस बीच मेरी मुलाकात कृषि अधिकारी डा. गुरविंदर सिंह बाजवा से हुई। बातों-बातों में उन्होंने पूछ लिया कि कनाडा क्यों जाना चाहते हो। मैंने कहा, पैसा कमाना चाहता हूं। उन्होंने पलट कर पूछा, अपना घर-परिवार छोड़ कर? यदि यहीं उतना पैसा मिल जाए तो?
गुरदीपक ने बताया कि कृषि अधिकारी की यह बात सुनकर मेरे दिमाग में आया कि अगर अपने मुल्क में ही इतनी कमाई हो जाए तो विदेशी धरती पर जाकर गुलामी क्यों करें। गुरदीपक के अनुसार, डा. बाजवा ने बताया कि कनाडा जाने के लिए लाखों रुपये लगेंगे। यदि इससे आधे में ही वहां जितनी कमाई हो जाए, तो कैसा रहेगा। इसके बाद उन्होंने गुरदीपक को मशरूम की खेती के बारे में बताया और इसकी पूरी तकनीक व खर्च की जानकारी दी।गुरदीपक ने बताया कि धीरे-धीरे मैंने काम बढ़ाना शुरू किया और अब वाहेगुरु की मेहर है कि सारा खर्च निकाल कर हर महीने तीन से साढ़े तीन लाख रुपये कमा लेता हूं। और क्या चाहिए।
अपना देश ही कनाडा है। बस काम करने वाला चाहिए। घूमना मेरा शौक है। इलाके के कई युवाओं को इससे रोजगार मिला है। कुछ और युवा भी प्रेरित हो रहे हैं। अब वे भी अपने देश में ही रहकर किस्मत की लकीरों को बदलना चाहते हैं। मेरी युवाओं से अपील है कि मेहनत करें और विदेश जाने का मोह छोड़कर अपने देश में ही नई इबारत लिखें। अब कनाडा जाऊंगा, लेकिन परिवार के साथ घूमने के लिए।
मशरूम के साथ-साथ अब गुरदीपक ने खाद का काम भी शुरू किया है, जो अच्छे ढंग से चल रहा है। गेहूं की भूसी में पानी का छिड़काव कर गोबर मिलाकर खाद तैयार की जाती है। अब सरकार भी इस काम मेें सब्सिडी दे रही है। अपने फार्म में इस्तेमाल के अलावा वह इसे बेच भी लेते हैं।
गुरदीपक बताते हैं कि मशरूम की फसल एक माह में तैयार हो जाती है। पालिथिन के मशरूम बैग को बंद करके नियंत्रित तापमान में एक कमरे के अंदर रख दिया जाता है। 15 दिन बाद इस बैग को खोल कर उस पर दो इंच की मिट्टी की परत बिछाई जाती है। इसमें नमी बरकरार रखने के पानी का छिड़काव किया जाता है। अगले 15 दिनों में मशरूम की फसल तुड़ाई लायक हो जाती है। एक एकड़ में फैले उनके फार्म में रोज एक से लेकर पांच क्विंटल तक मशरूम पैदा तैयार होती है। मंडी में प्रति किलो 80 से 100 रुपये का भाव मिल जाता है।