नई दिल्ली। दुनिया के महासागर 2022 में अब तक के सबसे गर्म दर्ज किए गए थे, जो कि जो मानव-जनित उत्सर्जनों के कारण ग्रहों की जलवायु में किए गए गहन और व्यापक परिवर्तनों को प्रदर्शित करते हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी का 90% से अधिक महासागरों में अवशोषित हो जाता है। 1958 से शुरू होने वाले रिकॉर्ड, 1990 के बाद ग्लोबल वार्मिंग में तेजी के साथ, समुद्र के तापमान में खतरनाक वृद्धि स्तर को दिखाते हैं।

समुद्री सतह का तापमान दुनिया के मौसम पर एक बड़ा प्रभाव डालता है। गर्म महासागर अधिक तीव्र तूफान, टाइफून और हवा में अधिक नमी का कारण बनता है। जिससे अधिक तीव्र बारिश और जानलेवा बाढ़ आती है। गर्म पानी भी फैलता है, समुद्र के स्तर को ऊपर धकेलता है और तटीय शहरों को खतरे में डालता है। वातावरण के तापमान की तुलना में महासागरों का तापमान प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता से बहुत कम प्रभावित होता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पूर्व-पश्चिम द्विध्रुव में, जहां पश्चिम (केन्या, इथियोपिया और सोमालिया) का पूर्वी (इंडोनेशिया) हिस्से के पानी की तुलना में ठंडा है। शोधकर्ताओं ने बताया जब पानी में गर्मी बढ़ती है तो इंडोनेशिया सहित आसपास के देशों में तेज बारिश होती है, जबकि पानी का तापमान कम होने पर पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति पैदा होती है। करीब 17,000 वर्ष पहले ये प्रभाव चरम स्थिति में थे, जिसकी वजह से दुनिया की सबसे बड़ी विक्टोरिया झील पूरी तरह सूख गई थी।

नए महासागर ताप विश्लेषण का निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने निष्कर्ष निकाला कि मानव गतिविधियों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी की ऊर्जा और जल चक्रों में गहरा बदलाव आया है, जिससे पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। मिनेसोटा में सेंट थॉमस विश्वविद्यालय और अध्ययन दल के भाग के प्रोफेसर जॉन अब्राहम ने कहा कि यदि आप ग्लोबल वार्मिंग को मापना चाहते हैं, तो आप मापना चाहते हैं कि वार्मिंग कहां जाती है, और 90% से अधिक महासागरों में जाती है।