रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत में दुष्कर्म पीड़िता नेत्रहीन युवती के गर्भपात को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि रिम्स की रिपोर्ट के आधार पर अब गर्भपात कराना उचित नहीं है। ऐसे में मुआवजे के रूप में युवती के नाम पर दस लाख रुपये फिक्सड डिपोजिट कराने का निर्देश दिया है।
अदालत ने कहा कि उक्त राशि निचली अदालत द्वारा मुआवजा देने के आदेश से अलग होगी। रांची उपायुक्त पीड़िता के पिता के कहने अनुसार राष्ट्रीय बैंक में खाता खुलावाएंगे। जच्चा और बच्चा दोनों की देखभाल सरकार करेगी। चिकित्सकीय खर्च भी राज्य सरकार ही उठाएगी। युवती को दिव्यांग पेंशन योजना का लाभ दिया जाएगा। अदालत ने बेसहारा महिलाओं के लिए रांची में शेल्टर होम खोलने का भी आदेश दिया है।
अदालत ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव, समाज कल्याण महिला और बाल विकास के सचिव, रांची के उपायुक्त और रांची डालसा के सचिव को भेजने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही याचिका को निष्पादित कर दिया। फिलहाल युवती का इलाज रिम्स में चल रहा है। उसे खूंटी के शेल्टर होम भेजा जा सकता है।
युवती ने अपनी गरीबी की हवाला देते हुए हाई कोर्ट से गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। इस पर हाई कोर्ट ने रिम्स को मेडिकल बोर्ड का गठन कर पूछा था कि युवती का सुरक्षित गर्भपात किया जा सकता है या नहीं। रिम्स ने मंगलवार को रिपोर्ट देते हुए कहा था कि महिला 28 सप्ताह की गर्भवती है और उसका गर्भपात सुरक्षित नहीं रहेगा। इसके बाद अदालत ने सरकार और पीड़िता के वकीलों को आपस में विमर्श कर यह बताने को कहा था कि इस मामले में आगे क्या किया जा सकता है।
बता दें कि युवती रांची जिले की रहने वाली है। जब वह नाबालिग थी तो वर्ष 2018 में उसके साथ पहली बार दुष्कर्म हुआ था। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में मामला दर्ज किया था और पोक्सो एक्ट के तहत यह मामला निचली अदालत में लंबित है। कुछ माह बाद उसके बाद दोबारा दुष्कर्म हुआ। उसकी जांच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कराई गयी थी। पीड़िता ने अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने का हवाला देते हुए कोर्ट से गर्भपात कराने की गुहार लगाई थी। युवती की मां नहीं है और पिता रिक्शा चलाकर अपना गुजारा करते हैं।