खतौली (मुजफ्फरनगर)। यूक्रेन के संकट से निकलकर खतौली का ऋतिक पांचाल दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर फ्लाइट से उतरा। सामने खड़े परिवार और रिश्तेदारों को देखकर आंखें भर आईं। छात्र ने बताया कि कीव से उड़ने वाली आखिरी फ्लाइट में वह सवार था, इसके बार एयरपोर्ट से कोई उड़ान नहीं हुई। अलमाटी के रास्ते वह किसी तरह दिल्ली तक पहुंचा।

खतौली के ढाकन मोहल्ला निवासी ऋतिक पांचाल से मिलने शुक्रवार को परिचितों का जमावड़ा लगा रहा। यूक्रेन के हालात जानने की लोगों के बीच उत्सुकता नजर आई। छात्र ने बताया कि वह विन्नित्सिया शहर में रहकर नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई कर रहा है। युद्ध के हालात बनने पर उन्होंने वापसी का टिकट बुक कराया। विन्नित्सिया शहर से 300 किमी का सफर ट्रेन से पूरा करने के बाद राजधानी कीव एयरपोर्ट पहुंचे।

कीव से उन्होंने बुधवार रात दो बजे उड़ान भरी। उन्हें जानकारी मिली कि उड़ान के तीन घंटे बाद ही कीव एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया गया। कीव से पांच घंटे का सफर करने के बाद वह आतरू पहुंचे थे। वहां से उनकी अगली फ्लाइट अलमाटी की थी। तीन घंटे अलमाटी पहुंचने में लगे। यहां से एक घंटे बाद स्वदेश लौटने की फ्लाइट मिली। सफर का आखिरी घंटा ऐसा लग रहा था कि मानों दस घंटे के बराबर हो। बृहस्पतिवार रात वह दिल्ली पहुंचा और अब परिवार के बीच खतौली में है। पिता बृजमोहन पांचाल, माता रेखा, भाई यश, अभिषेक सहित बहन, चाचा संदीप पांचाल के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भावुक हो गए।

ऋतिक ने बताया कि खतरा बढ़ने के बाद पहले छात्र यूनिवर्सिटी के बेसमेंट में रहे। जिनमें टिकट हो गए थे, वह निकलने शुरू हो गए। कुछ साथियों के टिकट नहीं हुए हैं।

ऋतिक पांचाल ने बताया कि आम दिनों में कीव से भारत लौटने का टिकट करीब 28 हजार रुपये में मिलता था, लेकिन बिगड़े हालात के बाद सात घंटे का सफर 30 घंटों में बदल गया। खर्च भी 70 हजार रुपये का आया।

ऋतिक ने बताया कि उसके एक दोस्त की आने से एक दिन पहले 22 फरवरी कीव से फ्लाइट थी। फ्लाइट को जर्मनी होकर भारत आना था। जर्मनी की ओर से वीजा न मिलने के कारण उसकी टिकट कैंसल कर दी गई। जिस कारण उसका दोस्त कीव में ही फंसकर रह गया।