मुजफ्फरनगर। किसान आंदोलन के बाद इस बार किसान भवन से विधानसभा चुनाव के समीकरण भी बदलने की तैयारी है। भाकियू भले ही सपा-रालोद गठबंधन का हिस्सा नहीं हो, लेकिन सिसौली से सिंबल बांटकर भाजपा के खिलाफ रणसिंघा बजा दिया है। टिकैत ने किसानों की प्रतिष्ठा का सवाल बताते हुए गठबंधन के समर्थन की बात कही। ऐसे में तय हो गया कि स्वयं ही नहीं बल्कि भाकियू को भी चुनावी राजनीति से दूर रहने की बात करने वाले टिकैत भाजपा के खिलाफ चुनावी रणनीति की अगुवाई में रहेंगे। वहीं मुजफ्फरनगर की छपरौली मानी जा रही बुढ़ाना सीट पर कांटे की टक्कर होगी।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह शनिवार को किसान भवन से सिंबल बंटवाकर किसानों को अपना संदेश देने में कामयाब नजर आ रहे हैं। अराजनैतिक भाकियू ने भी अपना रूख साफ कर दिया है। चौधरी नरेश टिकैत ने कहा कि इस सीट के टिकट को लेकर बड़ा उतार-चढ़ाव रहा। इसी वजह से टिकट दिए जाने में देरी हो गई। टिकैत ने किसान आंदोलन और भाजपा का जिक्र भी किया। किसान भवन से यह भी साफ हो गया कि भाकियू यहां गठबंधन के प्रत्याशियों से भाजपा के साथ सियासी कुश्ती में दांव-पेंच दिखाएगी।
सपा-रालोद गठबंधन इस बार बुढ़ाना विधानसभा से टिकैत परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ाना चाहते थे। भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत के बेटे गौरव टिकैत को भी प्रत्याशी बनाने की बात चली, लेकिन परिवार ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने खुद परिवार से चुनाव की बाबत पूछा था। लेकिन टिकैत परिवार ने कहा कि कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछले दिनों ही भाकियू प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत को चुनाव लडने का ऑफर भी दिया था। राकेश टिकैत ने उनका धन्यवाद भी दिया, लेकिन चुनाव से इनकार कर दिया। भाकियू मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक को लखनऊ बुलाया गया। बुढ़ाना से टिकट की बात चली, लेकिन एन वक्त पर पूर्व विधायक राजपाल बालियान बाजी मार गए। राजपाल भी लंबे समय तक भाकियू से ही जुड़े रहे हैं।
भाकियू राजनीति में भी हलचल मचाती रही है। कभी खतौली सीट पर भाकियू का संदेश निर्णायक होता था। पूर्व गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद भी मुजफ्फरनगर में चुनाव लड़ने से पहले दिवंगत भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत से मिलने पहुंचे थे। राजनीतिक विंग से लेकर चुनाव लड़ने तक के भाकियू ने कई दौर देखे हैं।
पश्चिमी यूपी से शुरू हो रहे पहले चरण के चुनाव से ही इस बार निर्णायक जंग मानी जा रही है। देखने वाली बात यह होगी कि भाकियू का गठबंधन को समर्थन और किसानों की नाराजी का कितना असर होता है। 10 मार्च केे नतीजों पर भी लोगों की निगाह टिक गई है।