मुजफ्फरनगर. किसान आंदोलन समाप्त होने के बाद से जिले में भाकियू का रुतबा कम हुआ है। जिले में 4 सीट गंवाने के बावजूद भाजपा नेता बयानों से आग उगल रहे हैं। चौ. राकेश टिकैत को भी धमकी मिल चुकी है। कई भाकियू नेताओं पर मुकदमे दर्ज हो चुके हैं, जबकि नामजद कई कार्यकर्ता जेल भी जा चुके हैं।

करीब 35 साल से किसानों की लड़ाई लड़ती आ रही भारतीय किसान यूनियन वैसे अराजनीतिक रही है। लेकिन राजनीति में इस संगठन का रुतबा हमेशा बरकरार रहा।

यही कारण रहा कि चाहे वीर बहादुर जैसे यूपी के धाकड़ मुख्यमंत्री को भाकियू अध्यक्ष महेन्द्र सिंह टिकैत के साथ जीआइसी मैदान में धरने पर बैठना पड़ा और करवे में पानी पीने को मजबूर होना पड़ा। भाकियू की यह धाक 1987 शामली में खेड़ी करमू बिजली घर पर हुए आंदोलन से बनी।

भाकियू के लिए किसनों की लड़ाई का लगभग यह 35 वां वर्ष चल रहा है। अब तक सरकार और व्यवस्था के विरुद्ध लड़ी जंग में किसानों ने क्या खोया और क्या पाया? कभी भाकियू का सितारा बुलंदी पर रहा तो कभी गर्दिश में। कभी सरकार किसानों के सामने पानी भरती नजर आई तो कभी किसान अपने हक के लिए जूझते दिखे। मासिक पंचायतों में भाकियू किसानों के साथ ज्यादती के विरुद्ध आंदाेलन का बिगुल फूंकती रही।

एक मार्च 1987 को शामली के खेड़ी करमु बिजली घर पर हुए आंदोलन में सिंभालका के अकबर और लिसाढ़ के जयपाल ने शहादत दी। तब से किसानों के हक के लिए लड़ने वाला यह संगठन सांप्रदायिक एकता की मिसाल बना। तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध दिल्ली बार्डर पर करीब 387 दिन धरना देकर भाकियू ने किसानों के हक की लड़ाई लड़ी। अंतत: सरकार झुकी और राष्ट्रीय किसान मोर्चा की मांगों को स्वीकार किया। जिससे उसके घटक भाकियू का रुतबा भी बना। लेकिन किसान आंदोलन के बाद एकाएक भाकियू का सितारा जिले में गर्दिश में दिख रहा है।

केस-1
पूर्व विधायक उमेश मलिक ने की थी टिप्पणी

विधानसभा चुनाव में हार के बाद 20 मार्च को पूर्व विधायक उमेश मलिक ने बुढाना में एक पंचायत बुलाई थी। जिसमें उन्होंने भाकियू का नाम लिये बगैर खुले तौर से हरी टोपी वालों को चेतावनी दी थी। हालांकि इस मामले पर भाकियू ने भी त्वरित प्रक्रिया देते हुए डीएम कार्यालय पर धरने के दौरान भगवा पटको वालों के विरुद्ध बयानबाजी करते हुए अपनी भड़ास निकाली थी।

केस-2
राकेश टिकैत को मिली थी फोन पर धमकी

किसान आंदोलन समाप्त होने तथा यूपी में फिर से भाजपा के सत्तासीन होने के बाद से भाकियू के लिए हालात बदले हैं। 27 मार्च को भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत के चालक ने थाना सिविल लाइन में मुकदमा दर्ज कराते हुए बताया था कि किसी अज्ञात ने राकेश टिकैत को फोन पर जान से मारने की धमकी दी। यहां तक अज्ञात व्यक्ति ने फोन पर किसान नेता के साथ गाली गलौज भी की। इस मामले में पुलिस ने एनसीआर दर्ज की थी।

केस-3
धरने के बावजूद भाकियू कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी

28 मार्च की रात झगड़े के बाद भाकियू कार्यकर्ता जिला अस्पताल की इमेरजेंसी पहुंचकर मेडिकल कराने आए कुछ लोगों को पुलिस से लेकर चले गए थे। लेकिन बाद में पुलिस ने अस्पताल में तोड़फोड़ का आरोप लगाते हुए भाकियू कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले में थाना सिविल लाइन के कांस्टेबल ने 6 भाकियू कार्यकर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया था। 29 मार्च को कार्यकर्ताओं को छुड़ाने की मांग करते हुए चौ. राकेश टिकैत को स्वयं शहर कोतवाली में धरने पर बैठना पड़ा था। बावजूद पुलिस ने सभी भाकियू कार्यकर्ताओं का चालान कर दिया था। जिनकी बाद में जमानत हुई।

केस-4
भाकियू जिला उपाध्यक्ष पर रंगदारी का मुकदमा

नर्सिंग होम में बच्चा बदलने को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद बच्चे की आई डीएनए रिपोर्ट से मामले में गर्माहट आ गया था। बाल रोग विशेषज्ञ डा. अजय पंवार ने थाना सिविल लाइन में इस मामले में मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उनके क्लिनिक पर भाकियू कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन किया था। आरोप लगाया कि धरना समाप्त करने के ऐवज में भाकियू जिला उपाध्यक्ष विकास शर्मा ने ढाई लाख रुपये की मांग की थी। जिस पर पुलिस ने भाकियू जिला उपाध्यक्ष सहित कई दर्जन अज्ञात कार्यकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज किया।