नई दिल्ली. दूध को एक संतुलित आहार के तौर पर देखा जाता है. क्योंकि उसमें सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं. इसलिए बचपन से ही दूध पीने पर जोर दिया जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि, दूध से कैल्शियम की कमी पूरी होती है और हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं. लेकिन डायबिटीज के मरीजों के लिए दूध पीना कितना सुरक्षित है ये एक बड़ा सवाल है. वेबएमडी पर छपे एक हेल्थ लेख के अनुसार दूध में कार्बोहाइड्रेट्स भी होते हैं और कार्बोहाइड्रेट्स शुगर लेवल बढ़ा सकते हैं. डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे आइसक्रीम, दही या चीस के सेवन से पहले उसकी मात्रा पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि इन सभी में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं और हर मील के बाद शुगर चेक करना भी जरूरी है.

टाइप 1 डायबिटीज में पैंक्रियास काफी कम या फिर बिल्कुल इन्सुलिन नहीं बनाता. ये एक तरह का ऑटोइम्यून डिसआर्डर है, जो ज्यादातर बचपन में शुरू हो जाता है. वयस्कों में टाइप 1 डायबिटीज की सिर्फ 5.2% संभावना होती है. इसे कम किया जा सकता है, लेकिन इसे रोका नहीं जा सकता.

टाइप वन डायबिटीज में कार्बोहाइड्रेट इंटेक ( शुगर, स्टार्च और फाइबर), के असर को कम करने के लिए हर मील के बाद इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ता है.

जबकि टाइप टू डायबिटीज में पैंक्रियास पूरी तरह से इंसुलिन नहीं बना पाता या शरीर उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाता. जिसकी वजह से मोटापा बढ़ने लगता है.

डायबिटीज का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जिनकी फैमिली हिस्ट्री में डायबिटीज हो या फैमिली हिस्ट्री में गैस्टेशन डायबिटीज हो, उम्र ज्यादा हो, फिजिकली एक्टिव कम हो या फिर ग्लूकोस मेटाबॉलिज्म कम हो.

दूध या दूध से बने प्रोडक्ट बहुत से लोगों की डाइट का हिस्सा हैं, क्योंकि यह केल्शियम का अच्छा सोर्स हैं. लेकिन इनमें फैट और कार्ब्स दोनों की ही मात्रा ज्यादा हो सकती है. जो डायबिटीज के मरीजों के लिए रिस्की हो सकता है.