मुजफ्फरनगर। चुनावी रण में मोदी और योगी के जादू के बीच रालोद अध्यक्ष पूर्व सांसद जयंत सिंह ने अपनी पार्टी के खोए वजूद को नई ताकत दे दी है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पहली बार रालोद के लिए चुनावी नतीजे सुखद आए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह के देहावसान के बाद खाली हाथ खड़े जयंत ने राजनीतिक परिपक्वता साबित की।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने नए सिरे से खड़ा कर दिया है। सूबे में बदली राजनीतिक परिस्थितियों में उन्होंने न केवल हैंडपंप के सिंबल पर गठबंधन के ज्यादातर प्रत्याशियों को जीत दिलाने में कामयाबी पाई, बल्कि अकेले मुजफ्फरनगर और शामली में गठबंधन के लिए सात सीटें जीत ली। चरथावल से पंकज मलिक और कैराना से नाहिद हसन ही साइकिल के चुनाव चिन्ह पर जीते हैं।

दंगे के बाद पहली बार जाट-मुस्लिम समीकरण का प्रभाव भी नतीजों पर दिखा। सपा अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम अखिलेश यादव से गठबंधन के बाद जयंत ने रणनीति के तहत वेस्ट यूपी में ज्यादातर सीटों पर अपने सिंबल पर सपा के चेहरों को लडऩे का मौका दिया। यह रणनीति कारगर साबित हुई। बुढ़ाना में राजपाल बालियान, मीरापुर में चंदन चौहान, पुरकाजी में अनिल कुमार और चरथावल में पंकज मलिक की जीत हुई। शामली से रालोद के प्रसन्न चौधरी, थानाभवन से अशरफ अली और कैराना से सपा के नाहिद हसन की जीत में जयंत की रणनीति काम आई।

शाह भी भांप गए थे जयंत का प्रभाव
चुनाव के दौरान दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई जाट नेताओं की बैठक में जयंत को लेकर भाजपा का रूख नरम दिखा। जाट मतदाताओं में जयंत का झुकाव भांपकर शाह ने कहा था कि वह गलत घर में चले गए हैं। हालांकि इसके बाद जयंत सिंह ने एक रैली के दौरान स्पष्ट किया कि वो चवन्नी नहीं है जो कोई भी उछाल देगा।