लखनऊ. समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का आज गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। मुलायम की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें आज आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। उनकी तबीयत बिगड़ने की जानकारी पाने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उनके बेटे अखिलेश यादव भी अपनी पत्नी डिंपल यादव के साथ आनन-फानन में दिल्ली पहुंचे थे। शिवपाल सिंह यादव,अपर्णा यादव और प्रतीक यादव भी अस्पताल में मौजूद थे। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद मुलायम सिंह यादव को बचाया नहीं जा सका।

82 वर्षीय मुलायम सिंह यादव की तबीयत काफी दिनों से खराब चल रही थी और वे अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में भर्ती थे। रबिवार को दोपहर सांस लेने में दिक्कत के बाद उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। मुलायम सिंह यादव सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा उन्होंने केंद्र में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं। मुलायम सिंह यादव पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। पहली बार इस सूबे के मुख्यमंत्री बनने की काफी रोचक दास्तान है और उन्होंने सीएम पद के लिए उस समय के कद्दावर नेता और चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को पटखनी दी थी।

1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने 1991 तक प्रदेश की कमान संभाली थी। उत्तर प्रदेश में 80 के दशक में चार दलों जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल अ और लोकदल ब ने मिलकर जनता दल का गठन किया था। 1989 के विधानसभा चुनाव में एक दशक से ज्यादा समय बाद विपक्ष ने अपनी ताकत दिखाई थी और 208 सीटों पर जीत हासिल की थी। 425 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए 14 अतिरिक्त विधायकों की जरूरत थी।

चार दलों के विलय के बाद बने जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अजित सिंह का नाम लगभग तय हो चुका था, लेकिन फिर फैसला बदलना पड़ा क्योंकि जनमोर्चा के विधायक मुलायम सिंह के पाले में जाकर खड़े हो गए थे और मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे।

उस समय केंद्र में जनता दल की सरकार का गठन हो चुका था और विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। यूपी में जनता दल की जीत के साथ ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि अजित सिंह मुख्यमंत्री होंगे और मुलायम सिंह यादव डिप्टी सीएम। लखनऊ में अजित सिंह की ताजपोशी के लिए जोरदार तैयारियां चल रही थीं मगर इसी बीच मुलायम सिंह यादव ने डिप्टी सीएम का पद ठुकराते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर दी।

मुलायम की ओर से दावेदारी किए जाने के बाद मामला फंस गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने घोषणा की कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से विधायकों के गुप्त मतदान के माध्यम से किया जाएगा। इसके बाद मुलायम सिंह ने अपना सियासी कौशल दिखाते हुए अजित सिंह को पटखनी देने में कामयाबी हासिल की।

1989 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का फैसला करने के लिए मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल को केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था। केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने भी एक बार मुलायम सिंह से चर्चा करके उन्हें डिप्टी सीएम के पद के लिए रजामंद करने की कोशिश की मगर कामयाबी नहीं मिल सकी।

मुलायम सिंह ने तगड़ा चरखा दांव खेलते हुए बाहुबली डी पी यादव की मदद से अजित सिंह के खेमे के 11 विधायकों को तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली। इस सियासी जोड़-तोड़ में बेनी प्रसाद वर्मा ने भी मुलायम सिंह की काफी मदद की थी।

मतदान के समय विधानसभा में मतदान स्थल पर दोनों पक्षों की ओर से शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की गई। तिलक हाल के बाहर दोनों खेमों से जुड़े हुए सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे और अपने-अपने नेता के पक्ष में नारेबाजी कर रहे थे। इस दौरान असलहों का भी प्रदर्शन किया गया था। मुलायम सिंह और अजित सिंह के बीच काफी कड़ा मुकाबला हुआ मगर अजीत सिंह मुलायम सिंह से मात्र 5 वोटों से पिछड़ गए। दोनों नेताओं के बीच काफी कड़ा मुकाबला था मगर मुलायम सिंह यादव ने सियासी कौशल दिखाते हुए चौधरी चरण सिंह की विरासत की दावेदारी कर रहे अजीत सिंह को पटखनी दे दी थी।

पुराने समय की राजनीति के जानकारों का कहना है कि उस समय वी पी सिंह मुलायम सिंह यादव को पसंद नहीं करते थे और वे अजित सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के इच्छुक थे। उन्होंने इस बात की बाकायदा घोषणा भी कर दी थी। वैसे मतदान के दौरान वीपी सिंह खुलकर सामने नहीं आए और उन्होंने किसी विधायक से अजित सिंह को वोट देने की पैरवी नहीं की। ऐसे में मुलायम ने अपने सियासी कौशल से अजित सिंह के सपने को चकनाचूर करते हुए पहली बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी हासिल की थी।

बाद में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन करते हुए प्रदेश की सियासत पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली और अजित सिंह काफी पिछड़ गए। अजित सिंह के निधन के बाद अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है जबकि समाजवादी पार्टी का संचालन मुलायम के बेटे अखिलेश यादव कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा समय में अखिलेश और जयंत ने हाथ मिला रखा है और वे भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहे हैं।