मुजफ्फरनगर। खतौली विधानसभा के उपचुनाव में आज शाम 6:00 बजे तक फाइनल 56.50 पर्सेंट मतदान हुआ। जबकि पिछले चुनाव में 69 परसेंट मतदान हुआ था। इस बार13 परसेंट मतदान कम हुआ है। यूपी की मैनपुरी लोकसभा के साथ रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान में खतौली ने सुबह से ही बढ़त बनाए रखी। शाम 5 बजे तक यहां 54.50 प्रतिशत वोट पड़ गए थे। जबकि मैनपुरी में इस समय तक 51.89 प्रतिशत और रामपुर में सिर्फ 31.22 प्रतिशत वोट पड़े थे। खतौली में बीजेपी की राजकुमारी सैनी के मुकाबले में मदन भैया को उतारकर सपा-रालोद गठबंधन ने इस बार मजबूत घेराबंदी करने की कोशिश की। यह कोशिश कामयाब हुई या बीजेपी की रणनीति काम आई यह तो 8 दिसम्‍बर 2022 को मतगणना के नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन फिलहाल दोनों ओर से दावे जीत के किए जा रहे हैं।

मैनपुरी और रामपुर की तरह खतौली उपचुनाव में भी भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन में सीधी लड़ाई है। दोनों सीटों की तरह मतदान की सुबह से ही यहां भी सपा-भाजपा के बीच आरोप-प्रत्‍यारोप का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर पूरे दिन चलता रहा। सपा ने तो अपने आफिशियल ट्वीटर से सीओ खतौली राकेश कुमार पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप भी लगा दिया। कहा कि सीओ खतौली ने कुछ मतदाताओं का आधार कार्ड देखने के बाद उन्हें वापस भेज दिया है। सपा ने चुनाव आयोग से इस मामले का संज्ञान लेते हुए सीओ को सस्पेंड करने की मांग की। इसका जवाब जिला पुलिस ने भी ट्वीटर के जरिए ही दिया। पुलिस ने कहा कि सीओ खतौली ने निष्‍पक्ष पक्ष मतदान के लिए मतदाताओं से चुनाव आयोग द्वारा जारी गाइडलाइंस के अनुसार फोटो युक्त पहचान पत्र साथ रखने के लिए कहा था। उधर, खतौली विधानसभा क्षेत्र के कई बूथों से ईवीएम खराब होने की भी शिकायतें आती रहीं। 11:30 बजे तक ही 20 से अधिक ईवीएम, 16 बैलेट यूनिट, 11 कंट्रोल यूनिट और 10 बीबी यूनिट खराब होने की सूचना मिली। बताया गया कि इन्‍हें सेक्‍टर मजिस्‍ट्रेटों ने तत्‍काल बदलवा दिया। हालांकि इस दौरान 10 से 15 मिनट तक मतदान प्रभावित होने की भी सूचना मिली।

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के समय खतौली कस्‍बे का जिक्र अक्‍सर सुनाई देता था। यह कस्‍बा मुजफ्फरनगर शहर से करीब 25 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। मैनपुरी लोकसभा की सीट सपा संस्‍थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के चलते खाली हुई। रामपुर विधानसभा की सीट हेट स्‍पीच मामले में आजम खान को सजा होने के बाद उनकी सदस्‍यता जाने के चलते और खतौली की सीट इस वजह से खाली हुई कि जिला अदालत ने 2013 के दंगों के एक मामले में बीजेपी के विधायक विक्रम सिंह सैनी को दोषी करार दिया था। उन्हें दो साल कैद की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद आजम की तरह उनकी भी सदस्‍यता चली गई और खतौली में उपचुनाव कराना पड़ा। बीजेपी ने इस बार विक्रम सिंह सैनी की पत्‍नी राजकुमारी सैनी को टिकट दिया तो सपा-रालोद गठबंधन ने चार बार के विधायक मदन भैया को उतार दिया। मदन भैया ने अपना पिछला चुनाव करीब 15 साल पहले जीता था। 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में गाजियाबाद के लोनी से उन्हें लगातार हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में मदन भैया को आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद का भी समर्थन हासिल था। चंद्रशेखर ने सक्रिय रूप से उनके लिए प्रचार भी किया।

खतौली के राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो यहां 3.16 लाख मतदाताओं में करीब 50 हजार अनुसूचित जाति, 80 हजार मुस्‍लिम और 1.5 लाख अन्‍य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मतदाता बताए जाते हैं। ओबीसी मतदाताओं में सैनी समुदाय के 35 हजार मतदाताओं के अलावा गुर्जर, प्रजापति, कश्‍यप और जाट वोटरों को शामिल बताया जाता है। खतौली की सियासत को नजदीक से समझने वाले बताते हैं कि इस बार चुनाव में समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए सपा-रालोद गठबंधन से जयंत चौधरी ने जहां लगातार सक्रियता बनाए रखी वहीं चंद्रशेखर आजाद ने भी दलित बस्तियों में घर-घर जाकर प्रचार किया। उधर भाजपा ने भी आईपीएस से राजनेता बने समाज कल्‍याण मंत्री असीम अरुण की अगुवाई में वरिष्‍ठ नेताओं का एक दल यहां भेजा था। असीम अरुण ने दलित और पिछड़े समुदाय के लोगों के बीच मुलाकातों का सिलसिला चलाया और उन्‍हें उनके उत्‍थान के लिए योगी-मोदी सरकार द्वारा किए गए कामों की जानकारी दी। इस चुनाव में 2013 के साम्‍प्रदायिक दंगों का भी मुद्दा जब-तब उठता रहा। बताया जाता है कि दंगों में 62 लोग मारे गए थे और करीब 40 हजार लोगों को विस्‍थापित होना पड़ा था।

यह सही है कि यूपी की एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव के नतीजों का यूपी या केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं पड़ना है लेकिन ये महत्‍वपूर्ण इस वजह से हैं कि इनमें जीत और हार से 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक संदेश निकलेगा। बीएसपी और कांग्रेस ने रणनीति के तहत खुद को इस मुकाबले से बाहर रखा लेकिन मुकाबले में शामिल बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन दोनों ने जीत के लिए पूरा जोर लगाया। जाहिर दोनों की कोशिश रही कि 2024 के लिए पश्चिमी यूपी से उनके पक्ष में ऐसा सकारात्‍मक संदेश निकले जिससे कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया जा सके। देखना है कि दोनों में किसकी कोशिश को जनता ने परवान चढ़ाया और किसकी उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया है।