मुजफ्फरनगर। लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा की नजर पिछले पांच साल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए सियासी नुकसान की भरपाई पर है। लोकसभा चुनाव 2019 और इसके बाद विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा को जाट-मुस्लिम बहुलता वाली सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था। रालोद के साथ गठबंधन से जाटों के साथ मुस्लिम वोट हासिल करने की जुगत भी लगाई जा रही है। नतीजे बताएंगे कि गठबंधन का प्रयोग कितना सफल रहा ?
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद भाजपा ने साल 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी के 22 जिलों में बंपर बहुमत हासिल किया था। जाट वोट बैंक भाजपा पर ट्रांसफर हो जाने के कारण रालोद का खाता भी खाली हो गया था 2017 में सिर्फ छपरौली में सहेंद्र रमाला ही रालोद से जीते, लेकिन वह भी बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। लेकिन 2019 आते-आते जाट, दलित और मुस्लिम मतों की अधिकता वाली सीटों पर भाजपा का असर कम होने लगा।
यही वजह है कि बिजनौर, सहारनपुर, नगीना, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद और रामपुर सीटें भाजपा को गंवानी पड़ी थी। किसान आंदोलन के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को पश्चिमी यूपी में 60 में 40 सीट ही मिल सकीं। 31 सीटों पर विपक्षी दलों, सपा-रालोद के प्रत्याशी जीते। स्थिति यह बनी कि शामली जिले में भाजपा का खाता नहीं खुल सका। उसका एक भी प्रत्याशी विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सका। मुजफ्फरनगर जिले की छह में से पांच सीटें विपक्ष के पास हो गई। जीरो से शुरू हुए रालोद के नौ विधायक जीत गए, जिससे पश्चिमी यूपी में बढ़ती ताकत का अहसास भाजपा को भी हुआ।
भाजपा मिशन 400 के लक्ष्य की तैयारी में जुटी है, ऐसे में पश्चिम यूपी पर सबसे पहली नजर है। दरअसल, चुनाव का पहला चरण भी यहीं से शुरू होता है। यही वजह है कि रालोद के साथ गठबंधन कर जाट वोट बैंक के अलावा मुस्लिम मतों में भी सेंधमारी की तैयारी की जा रही है। रालोद भी जाट, मुस्लिम और दलित के समीकरण पर आगे बढ़ रहा है। गठबंधन में अपने हिस्से में आने वाली राज्यसभा, एमएलसी या मंत्रालय में कोई एक पद मुस्लिम को दिए जाने की संभावना है। मुस्लिम नेताओं ने रालोद नेतृत्व से संपर्क भी शुरू कर दिया है। यही नहीं कई टिकट के दावेदार भी भाजपा से गठबंधन के बाद पदों का गुणाभाग कर रहे हैं।