मुज़फ्फरनगर : केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के जनाधार की वापसी का एक और मौका मीरापुर उपचुनाव के जरिए मिला है। लोकसभा चुनावों में भाजपा गठबंधन में शामिल हुए जयंत चौधरी की लोकप्रियता और मतदाताओं पर पकड़ 13 नवंबर को मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट के होने वाले उपचुनाव के परिणाम के रुप में सामने आयेगी। अनिल कुमार को मंत्री और चन्दन चौहान को सांसद बनाने के जयंत के प्रयोग का परिणाम भी इस चुनाव में सामने आएगा।
जयंत के दादा और भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह ने 1977 में जनता पार्टी को जिताने में निर्णायक भूमिका अदा की थी और उनके करीब 100 सांसद, जनता पार्टी के विजयी उम्मीदवारों में शामिल थे। चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री भी बने और उससे पहले दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन वह कई बार केंद्र में काबीना दर्जे के मंत्री ज़रूर रहे।
उत्तर प्रदेश में चौधरी अजित सिंह से अलग होकर मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह से पिछड़ों की गोलबंदी कर अपने बूते जनाधार वाली पार्टी खड़ी की, उसका उल्टा असर, पश्चिम की किसान उन्मुख पार्टी राष्ट्रीय लोकदल पर पड़ा। ना तो चौधरी अजीत सिंह और ना ही उनके बेटे जयंत चौधरी, रालोद को अभी तक बड़ी पार्टी के रूप में खड़ी कर पाए।
चौधरी चरण सिंह के जमाने में किसान और पिछड़ी जातियां रालोद की मुख्य धूरी में थे। जाट के अलावा यादव, कुर्मी, गुर्जर, पाल , सैनी आदि किसान जातियाँ उन्हें अपनी आवाज मानती थी, मुस्लिम उनके साथ रहते थे लेकिन बाद में पिछड़ी जाति उनका साथ छोड़ती चली गई। केवल जाट ही उनका आधार बना रह गया।