मुजफ्फरनगर : 11 साल बीतने के बावजूद मुजफ्फरनगर दंगे का दर्द दिलों में जिंदा है। यह दंश दोनों पक्षों ने झेला। घरों को छोड़ यहां-वहां बसे सैकड़ों परिवार सामान्य जिंदगी के लिए जद्दोजहद में हैं। अपनों को खो देने वाले परिवारों के जख्म भी ताजा हैं और जिक्र आते ही दर्द छलक उठता है। अगली स्लाइडों में तस्वीरों के साथ जानिए पूरा अपडेट-

 

मुजफ्फरनगर में शाहपुर से सटे गांव पलड़ा में कुटबा, कुटबी और दुल्हैरा से विस्थापित हुए करीब 250 परिवार बसे हैं। सपा सरकार ने इन्हें पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया था, जिससे जमीन खरीदकर लोगों ने अपने मकान बना लिए। बस्ती में घुसते ही कय्यूम के मकान में यूनुस और फुरकान बातचीत करते नजर आते हैं। दंगे का जिक्र आते ही कहते हैं कि उन्होंने जो झेला है वह किसी को न झेलना पड़े। मकान तो मिल गए, लेकिन रोजगार के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

दंगे के दौरान विस्थापित हुए परिवारों के गांवों में स्थित घर खंडहर हो रहे हैं। कुटबा से जाकर पलड़ा एवं शाहपुर में बसे लोगों के घरों पर ताले लटके हैं। यहां स्थित एक मस्जिद पर भी ताला लगा है। पलड़ा में रह रहे परिवारों के सदस्य कहते हैं कि कभी कभार गांव में चले जाते हैं, लेकिन अब वहां रहना नहीं चाहते।

काकड़ा, दुल्हैरा, भौराकलां, सिसौली, कुटबा और कुटबी से विस्थापित हुए 250 से ज्यादा परिवार शाहपुर कस्बे से उत्तर-पूर्व की ओर तंबू लगाकर रहने लगे थे। इनमें से ज्यादातर ने तो मुआवजा मिलने के बाद जमीन खरीदकर मकान बना लिए, लेकिन अभी भी 100 से ज्यादा परिवार झुग्गियों में रह रहे हैं। दंगा पीड़ित संघर्ष समिति के अध्यक्ष सलीम कहते हैं कि किसी परिवार के चार भाइयों में से एक को मुआवजा मिल गया, लेकिन बाकी तीन के परिवार झुग्गियों में ही रह गए। शौकीन, रक्खी, गुलशान, हारून, नौशद, गुलजार एवं महबूब आदि के परिवार झोपड़ियों में रह रहे हैं।

गांव कवाल में 26 अगस्त 2013 को मलिकपुरा निवासी गौरव और कवाल निवासी मुजस्सिम के बीच बाइक साइकिल से टकराने पर कहासुनी हो गई थी। इसी विवाद में अगले दिन मुजस्सिम, उसके साथी शाहनवाज और गौरव, उसके ममेरे भाई सचिन के बीच मारपीट हो गई, जिसमें गौरव व सचिन की पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी।

इसके बाद घायल शाहनवाज ने भी अस्पताल में दम तोड़ दिया था। 28 अगस्त को सचिन और गौरव के अंतिम संस्कार से लौट रही भीड़ ने कवाल में पथराव और आगजनी कर दी थी। इस मामले में 30 अगस्त को शहर के खालापार में जुम्मे की नमाज के बाद दूसरे समुदाय की भीड़ ने डीएम और एसएसपी को ज्ञापन दिया था तो दूसरे पक्ष ने सचिन और गौरव की हत्या के मामले में कार्रवाई के लिए 31 अगस्त को नगला मंदौड़ में पंचायत बुला ली थी। सात सितंबर को फिर से इस मामले में नगला मंदौड़ में पंचायत हुई। पंचायत से लौट रहे लोगों पर हमले के बाद जिले में दंगा भड़क गया था।

26 अगस्त : जानसठ कोतवाली के कवाल गांव में बाइक और साइकिल की भिड़ंत होने पर मुजस्सिम और शाहनवाज का गौरव से विवाद हुआ।
27 अगस्त : शाहनवाज से हुई कहासुनी के बाद मारपीट। सुआं लगने से शाहनवाज हुआ घायल। बाद में जानसठ अस्पताल में हुई मौत। शाहनवाज पक्ष ने गौरव और सचिन की पीट-पीटकर हत्या कर दी।
28 अगस्त : सचिन-गौरव के अंतिम संस्कार से लौटती भीड़ ने कवाल में घुसकर पथराव और आगजनी की। तत्कालीन डीएम सुरेंद्र सिंह एवं एसएसपी मंजिल सैनी का तबादला।
30 अगस्त : कवाल में हुई तोड़फोड़, पथराव एवं आगजनी के विरोध में खालापार में जुमे की नमाज के बाद दिया गया ज्ञापन। भड़काऊ भाषण एवं नारेबाजी।
31 अगस्त : खालापार में हुई सभा की प्रतिक्रिया में हिंदूवादी संगठनों ने सिखेड़ा के गांव नंगला मंदौड़ में की पंचायत।
07 सितंबर : नंगला मंदौड में दोबारा हुई महापंचायत से लौटते लोगों पर जगह-जगह किए गए हमले। जिले में जगह-जगह भड़का दंगा। 08 सितंबर: कुटबा-कुटबी व आसपास के क्षेत्र में भड़का दंगा, आठ लोगों की मौत।
09 सितंबर: एडीजी कानून व्यवस्था अरुण कुमार ने डाला डेरा। सेना की तैनाती।
10 सितंबर: कर्फ्यू में दो घंटे की ढील दी गई।
15 सितंबर: तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर्फ्यू ग्रस्त इलाकों का दौरा करने पहुंचे। काले झंडे दिखाए गए। एसएसपी एससी दूबे सस्पेंड।
17 सितंबर: दिन में कर्फ्यू खोला गया। स्कूल-कॉलेज खुले।