शाहजहांपुर. गन्ना को कैंसर (लालसड़न रोग) से बचाने में मिट्टी के सूक्ष्म जीवों से तैयार च्यवनप्राश (ट्राइकोडर्मा) कारगर साबित हो रहा है। अपर मुख्य सचिव ने यूपीसीएसआर की शाहजहांपुर प्रयोगशाला में ट्राइकोडर्मा समेत सभी जैव उत्पादों की वृद्धि के आदेश जारी किए हैं। साथ ही सेवरही तथा मुजफ्फरनगर की प्रयोगशाला में भी जैव उत्पाद बनाने के निर्देश दिए गए हैं।

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद (यूपीसीएसआर) की प्रयोगशाला में ट्राइकोडर्मा, एजेटोवेक्टर, पीएसबी कल्चर आर्गेनोडिकंपोजर, टाइकोकार्ड तथा बाइवेरिया बैसियााना और मेटाराइजियम एनीसोपली फंफूदी को तैयार किया जाता है। इनके प्रयोग से मृदा की उर्वराशक्ति के साथ रोगों से लड़ने की प्रतिरोधिक क्षमता भी बढ़ जाती है। वर्तमान में यूपीसीएसआर की शाहजहांपुर स्थित प्रयोगशाला में ही जैव उत्पादों का संवर्धन किया जा रहा है। लेकिन अब सेवरही तथा मुजफ्फरनगर केंद्रों पर भी जैव उत्पादों को उत्पादन शुरू होगा। इससे प्रदेश के करीब 120 चीनी मिलों से जुड़े करीब 45 लाख गन्ना किसानों को लाभ हाेगा।

लाल सड़न रोग की फंफूदी को मार देता है ट्राइकोडर्मा: खेती में रसायनों के असंतुलित प्रयोग से मृदा के सूक्ष्म जीवों की संख्या कम हो गई। इस कारण पौधों में रोग बढ़ रहे है। वर्तमान में गन्ने का कैंसर कहे जाने वाले लाल सड़न रोग गन्ने की सबसे बडी समस्या है। इसकी रोकथाम के लिए लाल सड़न रोग की फंफूदी को मारने वाले ट्राइकोडर्मा के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है। प्रति हेक्टेयर दस किलोग्राम ट्राइकोडर्मा डालने पर लाल सड़न रोग समेत फंफूंदी जनित रोगों से लड़ने में मृदा की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

इसलिए महत्वपूर्ण है जैव उत्पाद: जैव उत्पादों के प्रयोग से उपज वृद्धि के साथ मृदा स्वस्थ तथा वातावरण को सुरक्षित रहता है। शासन ने भी रसायनों के बजाय जैव उत्पादों की वृद्धि पर जोर दिया है। यूपीसीएसआर समेत गन्ना विभाग किसानों को ट्राइकोडर्मा को खेती का आवश्यक हिस्सा बनाने को प्रेरित कर रहा है। गन्ना शोध परिषद में अंकुश नाम से बनाया जा रहा ट्राइकोडर्मा खूब बिक रहा हे। ट्रइकोकार्ड काे भी किसान अपना रहे है। इससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है।

इस तरह बनता ट्राइकोडर्मा: प्रयोगशाला में मिट्टी में ट्राइकोडर्मा फंफूदी (सूक्ष्म जीव) की पहचान कर उसके मृदा से पृथक कर लिया जाता है। बाद में फंफूदी का क्रत्रिम माध्यम पर संवर्धन कर उनकी संख्या बढ़ाई जाती है। इसके बाद सुयोग्य वाहक टेलकम पाउडर में मिला कर पैकेट्स में भर दिया जाता है। डेढ़ से दो क्विंटल मिट्टी में दस किग्रा ट्राइकोडर्मा मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दिया जाता है। इससे गन्ने में लाल सड़क रोग समेत फंफूदीजनित रोग नहीं लगते है।

यूपीसीएसआर में वार्षिक जैव उत्पादन पर एक नजर

वर्ष : जैव उत्पादन

  • 2018-19 : 314.78 क्विंटल
  • 2019-20 : 426.28 क्विंटल
  • 2020-21 : 557.97 क्विंटल
  • 2021-22 : 567.38 क्विंटल

जैव उत्पादों के नाम तथा उनके कार्य

– ट्राइकोडर्मा : फासलों के लिए घातक फंफूदी को नष्ट कर पौधों की रक्षा करना

– एजेटोवेक्टर : वायुमंडल की नाइट्रोजन को स्थित कर पोधे को उपलब्ध कराना

– पीएसबी कल्चर : फास्फोरस सोल्यूब्लाइजिंग बैक्टीरिया, फास्फेट उर्वरक को घुलनशील अवस्था में बदल देता, जिसे आसानी से ग्रहण कर लेते।

– आर्गेनो डिकंपोजन : कार्बनिक पदार्थ जैसे गोबर, फसल अपशिष्ट आदि में शीर्घ विघ्टन में सहायक

– टाइकोकार्ड : गन्ने के बेधक कीटों की रोकथान,

– बाइवेरिया बैसियााना और मेटाराइजियम एनीसोपली फंफूदी को एक दीमक व सफेद गिडार से रक्षा करता है।

उत्‍तर प्रदेश गन्‍ना शोध परिषद के निदेशक डाक्‍टर वीके शुक्‍ला ने बताया कि किसानों की दूनी आय में जैव उत्पादों का अहम योगदान है। इसलिए अपर मुख्य सचिव ने जैव उत्पादों की वृद्धि पर जोर दिया है। शाहजहांपुर के साथ सेवरही व मुजफ्फनगर में जैव उत्पादों के शुभारंभ से यूपीसीएसआर की अतिरिक्त आय होगी। किसानों की आमदनी में भी इजाफा होगा।

वैज्ञानिक अधिकारी जैव उत्‍पाद डा. सुनील कुमार विश्‍वकर्मा ने बताया कि परिषद में जैव उत्पादन को बढ़ावा दिया गया है। वर्तमान में लक्ष्य के अनुरूप ट्राइकोडर्मा समेत सभी जैव उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है। उच्च गुणवत्ता व विश्वसनीयता की वजह से प्रदेश के किसान यूपीसीएसआर के उत्पादन पसंद करते है।