नई दिल्ली. वेस्टइंडीज में चल रहे अंडर-19 विश्व कप में भारत ने युगांडा के खिलाफ 326 रन से सबसे बड़ी जीत दर्ज की. इस जीत के हीरो रहे राज अंगद बावा. राज ने इस मुकाबले में 108 गेंद में 162 रन की नाबाद पारी खेली. उन्होंने 14 चौके और 8 छक्के लगाए. इसके साथ 19 साल के राजा अंडर 19 वर्ल्ड कप भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी भी बने. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने शिखर धवन का रिकॉर्ड तोड़ा. धवन ने 2004 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में स्कॉटलैंड के खिलाफ 155 रन की पारी खेली थी. राज का परिवार का खेलों से गहरा नाता है. पिता क्रिकेट कोच हैं. जबकि दादा तरलोचन सिंह बावा ओलंपियन थे और अब वो परिवार की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

राज अंगद बावा ने युगांडा के खिलाफ आखिरी लीग मैच से पहले इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अपने क्रिकेटर बनने, परिवार की विरासत आगे बढ़ाने के अलावा कई और मुद्दों पर बात की. राज जब 5 साल के थे, तब उनके दादा तरलोचन सिंह बावा का निधन हो गया था. वो 1948 में लंदन ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य थे. 19 साल के राज ने बताया, “मेरे पास अपने दादाजी की बहुत यादें नहीं हैं. क्योंकि जब उनकी मौत हुई थी, तब मैं काफी छोटा था. लेकिन मैंने अपनी दादी और अपने पिता से उनकी कहानियां सुनी हैं, जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी.”

दिलचस्प बात यह है कि राज गेंदबाजी दाएं और बल्लेबाजी बाएं हाथ से करते हैं. उन्होंने युवराज सिंह को देखकर अपनी बल्लेबाजी के स्टांस में बदलाव किया. उन्होंने इसे लेकर कहा, “मैं अपने पिता के क्रिकेट क्लब में युवराज को अभ्यास करते देखता था. जब मैंने पहली बार बल्ला उठाया, तो शायद मैं उनकी नकल करने की कोशिश कर रहा था, और फिर मैंने उन्हीं के स्टाइल में खेलने शुरू कर दिया. वो मेरे रोल मॉडल हैं.”

युवराज की तरह ही राज का जर्सी नंबर भी 12 है. वो क्यों इस नंबर की जर्सी पहनते हैं. इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है, जिसका उन्होंने खुलासा किया. राज ने बताया, “मैंने कई कारणों से नंबर 12 चुना. मेरे दिवंगत दादा का जन्मदिन 12 फरवरी को है. मेरे रोल मॉडल युवराज सिंह भी 12 नंबर वाली जर्सी पहनते थे. उनका जन्मदिन 12 दिसंबर को है. मैं भी अपना जन्मदिन 12 नवंबर को मनाता हूं,”राज जब बड़े हो रहे थे, तब उनका जुनून डांस और थिएटर था. पिता सुखविंदर सिंह को भी लगता था कि उनका बेटा क्रिकेटर की जगह एक्टर बनेगा. लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ, जिसने राज को क्रिकेट की तरफ मोड़ दिया. पिता सुखविंदर ने इससे जुड़ा किस्सा सुनाया. उन्होंने बताया, “राज शुरुआत में क्रिकेट नहीं खेलता था. मैंने भी उम्मीद छोड़ दी थी. मुझे लगा कि वो एक्टर बनेगा. राज का क्रिकेट से प्रेम तब शुरू हुआ, जब वह पहली बार अपने पिता के साथ धर्मशाला स्टेडियम गए. यहीं उनके क्रिकेटर बनने की शुरुआत हुई.

उन्होंने बताया, “मैं कोच था और हम कुछ स्थानीय टूर्नामेंट खेलने के लिए धर्मशाला गए थे. टीम के प्रैक्टिस सेशन के बाद राज मेरे पास आया और कहा, पापा मैं भी क्रिकेटर बनना चाहता हूं. वह मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन था.” राज के पिता सुखविंदर सिंह ने हरियाणा जूनियर टीम के लिए हॉकी खेली और 1988 में भारत अंडर-19 कैंप के लिए भी चुने गए थे. लेकिन स्लिप डिस्क के कारण क्रिकेट खेलने का उनका सपना खत्म हो गया और 22 साल की उम्र में ही कोच बन गए. 54 साल के सुखविंदर ने बेटे के तेज गेंदबाज बनने से जुड़ा का किस्सा बताया. उन्होंने कहा, “मैं गुरुग्राम के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में तैनात था, जब मैंने पहली बार राज की रफ्तार देखी थी. वह 11 वर्ष का रहा होगा. मैं उस मुकाबले में इस बात से प्रभावित था कि लेदर बॉल के साथ राज ने पहले ही मैच में 5 विकेट झटके थे. इसके बाद मैंने उनके गेंदबाजी एक्शन और फॉलो थ्रू पर 1 साल काम किया. इसके बाद मैंने उसे बल्लेबाजी पर ध्यान लगाने को कहा और इसी का नतीजा है कि वो ऑलराउंडर बन पाया.”

खुद राज भी अपने ऑलराउंडर बनने का श्रेय पिता को देते हैं. उन्होंने कहा, “पिता को मेरे खेल के बारे में पता था. मैं नेचुरल तेज गेंदबाज था. इसलिए उन्होंने मुझ से बल्लेबाजी पर फोकस करने को कहा. शुरुआत में मैं सिर्फ बल्लेबाजी पर ध्यान लगाता था और ऑफ स्पिन गेंदबाजी करता था. लेकिन विजय मर्चेंट ट्रॉफी के लिए पंजाब टीम का कैंप लगा था और इसी कैंप से मैंने दोबारा तेज गेंदबाजी शुरू की. लेकिन मैंने पिता को नहीं बताया. लेकिन बाद में पकड़ा गया. लेकिन पिता इससे खुश हुए और आज उनकी बदौलत ही मैं ऑलराउंडर बन पाया हूं.”