बागपत. मेरठ से 40 किमी दूर बागपत में शिवभक्तों का बड़ा केंद्र है। श्री परशुरामेश्वर महादेव मंदिर। पश्चिम यूपी के कांवड़िए, चाहे हरिद्वार की हर की पौड़ी से जल लें या कछला से। इस मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करने जरूर आते हैं। 40 एकड़ में फैले इस मंदिर के पीछे भगवान परशुराम की तपस्या की कहानी है। मान्यता है, भगवान परशुराम ने अपनी मां को जिंदा करने के लिए शिव की तपस्या यहीं की थी।
यहां के महंत के मुताबिक, मंदिर के गर्भगृह में 150 साल पुराने दस्तावेज रखे हैं। तभी ये यहां जल चढ़ाया जा रहा है। दिल्ली, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, अलीगढ़, हाथरस समेत तकरीबन सभी शहरों के भक्तों में इस मंदिर के लिए खास आस्था है। सावन माह में 80 लाख कांवड़ियों के यहां पहुंचने की संभावना है।
मंदिर के पुजारी बताते हैं, “हिंडन नदी के किनारे कजरी वन था। इसमें ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। एक दिन हस्तिनापुर के राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए कजरी वन पहुंचे। राजा सहस्त्रबाहु ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचे। वहां रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का खूब आदर सत्कार किया। राजा कामधेनु गाय को साथ ले जाना चाहते थे। जब वो ऐसा नहीं कर पाए तो रेणुका को ही साथ ले गए। फिर उन्हें छोड़ दिया। रेणुका वापस अपने आश्रम पहुंची। ऋषि ने गुस्से में उनको दोबारा कुटिया में जगह देने से मना कर दिया। रेणुका ने अपने पति से बार-बार प्रार्थना की लेकिन वो नहीं माने।
ऋषि ने अपने 4 बेटों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा। उनके 3 बेटों ने मना कर दिया। मगर चौथे बेटे परशुराम ने मां का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद परशुराम को गलती महसूस हुई। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी। परशुराम की तपस्या से भोलेनाथ खुश हुए। उन्होंने वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने अपनी माता को दोबारा जीवित करने के लिए कहते हैं। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया। इसके साथ ही भगवान शिव ने परशुराम को एक फरसा दिया। इसी फरसे से परशुराम ने राजा सहस्रबाहु का वध कर दिया। इसके बाद परशुराम ने जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी और वही पर आज ये मंदिर है।
उत्तराखंड के लंढौरा की राजकुमारी वन में घूमने आईं। हाथी इस जंगल में आकर रुक गया। सेना ने आगे बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन हाथी आगे नहीं बढ़ा। राजकुमार ने उस जगह की खुदाई के आदेश दिए। कथा है कि यहां पर खुदाई से शिवलिंग निकला। यह वही शिवलिंग है, जो मंदिर में मौजूद है। यहीं पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी कभी तपस्या की थी।
मुख्य पुजारी जयभगवान शर्मा ने बताया, “पिछले 2 सावन में कांवड़िए नहीं पहुंच पा रहे थे। कोरोना कॉल से पहले यहां करीब 20 लाख लोग दर्शन के लिए पहुंचते थे। भक्तों का उत्साह देखकर इस बार अनुमान 80 लाख शिवभक्तों का लगाया जा रहा है। मान्यता है कि यहां शिवलिंग के दर्शन करने से सुख और समृद्धि मिलती है। बाबा शिव जलाभिषेक से खुश होकर उनकी कामनाएं पूरी करते हैं।” भक्तों की ऐसी ही आस्था देखकर इस बार मंदिर की सजावट भव्य की गई है। मंदिर की दीवारों पर पेंटिंग की गई है। पैदल आने वाले कांवड़ियों के लिए सड़कों को साफ कराया गया है।
पूरे सावन होता है अलग-अलग श्रृंगार
मंदिर के बाहर मेला भी लगता है। भक्त यहां मन्नत की चुनरी बांधकर भी जाते हैं। पूरी होने पर उसे खोलने आते हैं। पूरे सावन माह में शिवलिंग का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। उनके मोहक श्रृंगार को देखने के लिए भी भक्त यहां पहुंचते हैं। भोले बाबा को रंग और फूलों से सजाया जाता है।
यहां का प्रसाद भी है खास
कांवड़ियों के ठहरने के लिए गांव में शिविर बनाए गए हैं। उनके खाने के इंतजाम भी मंदिर की तरफ से हैं। यहां पूरे सावन भंडारा चलता है। भक्तों को पूड़ी, सब्जी, हलवा दिया जाता है। यहां व्रत रखने वाले भक्तों के लिए अलग से फलहार भी रखे जाते हैं।
मंदिर की 150 CCTV से मॉनिटरिंग
मंदिर में भक्तों की सुरक्षा के लिए 150 CCTV लगाए गए हैं। 300 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। मंदिर के अंदर आने के लिए एक ही रास्ता रखा गया है। भक्तों को लाइन लगाकर मंदिर के अंदर जाने दिया जा रहा है। यहां एक कंट्रोल रूम भी बनाया गया है।
मंदिर की हिस्ट्री से जुड़े फैक्ट
हिस्ट्री ऑफ मेरठ की पहली बुक में मंदिर का जिक्र है। जिसमें परशुराम का टीला इस जगह को बताया गया है पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां सर्वे किया है। उनकी खुदाई में 5000 वर्ष पहले की वस्तुएं यहां मिली हैं।